जानें, शादी के कार्ड पर क्‍यों लिखते हैं चिरंजीव और आयुष्‍मति?

इन दो शब्‍दों की परंपरा का रहस्‍य

जमाना क‍ितना भी क्‍यों न बदल जाए लेकिन सदियों से चले आ रहे कुछ र‍िवाज आज भी कायम हैं। ऐसी ही एक परंपरा है शादी के कार्ड पर लड़के के नाम के आगे च‍िरंजीव और लड़की के नाम के आगे आयुष्‍मति शब्‍द का लिखा होना। क्‍या आपके मन में कभी यह ख्‍याल आया क‍ि आख‍िर लड़के-लड़की के नाम के आगे इन शब्‍दों का प्रयोग क्‍यों क‍िया जाता है। क्‍योंक‍ि सनातन धर्म में हर रस्‍म और हर परंपरा का कोई न कोई कारण जरूर होता है। जी हां ऐसी ही एक कहानी जुड़ी है शादी के कार्ड्स पर होने वाले इन दोनों शब्‍दों से भी। तो आइए जानते हैं….

ब्राह्मण से जुड़ा है इन दो शब्‍दों का रहस्‍य

कथा म‍िलती है कि सद‍ियों पहले एक ब्राह्मण था। उसके जीवन में सारे सुख थे लेकिन उसकी कोई संतान नही थी। पुत्र की कामना से उसने महामाया की तपस्या की। देवी ने तपस्‍या से प्रसन्न होकर ब्राह्मण से वरदान मांगने को कहा। इस पर ब्राह्मण ने कहा क‍ि हे देवी मां यद‍ि आप मुझपर प्रसन्‍न हैं और वरदान देना चाहती हैं तो मुझे पुत्ररत्‍न देकर कृतार्थ करें।

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ब्राह्मण और देवी का संवाद

ब्राह्मण से पुत्र रत्‍न की बात सुनकर देवी ने कहा क‍ि मेरे पास दो तरह के पुत्र हैं। लेकिन दोनों के बारे में एक बात जान लो फिर बताना तुम्‍हें कौन सा पुत्र चाहिए। देवी ने बताया क‍ि पहले पुत्र की उम्र दस हजार वर्ष है। लेकिन वह महामूर्ख होगा। वहीं दूसरा पुत्र केवल 15 वर्ष ही जीवित रहेगा लेकिन वह महान विद्वान होगा। इतना कहकर देवी ने ब्राह्मण से पूछा तुम्‍हें कौन सा पुत्र चाहिए।

इसलिए ब्राह्मण ने मांगा कम उम्र वाला पुत्र

कथा के अनुसार ब्राह्मण ने कम उम्र वाले पुत्र के प्राप्ति की इच्‍छा जताई। इसपर देवी मां ने कहा तथास्‍तु। कुछ द‍िनों बाद ही कुछ दिन बाद ब्राह्मणी ने पुत्र को जन्म दिया। बड़ी खुशी से उसका लालन- पालन किया धीरे-धीरे पांच वर्ष बीत गए। देवी मां का वह वरदान याद करके ब्राह्मणी ने ब्राह्मण से कहा पांच वर्ष बीत गये हैं, मेरा पुत्र अल्पायु है जिन आंखों ने पुत्र को बढ़ते हुए देखा है। जिसमें मेरे प्राण बसते हैं। मैं उसकी मृत्‍यु नहीं देख पाऊंगी।

पुत्र ने जब यमराज को बना ल‍िया बंदी

कथा आगे म‍िलती है क‍ि ब्राह्मणी के इस दु:ख को देखकर ब्राह्मण ने अपने पुत्र को विद्या ग्रहण करने के लिए काशी भेज दिया। दिन-रात दोनों पुत्र के वियोग में दुखी रहने लगे। धीरे-धीरे समय बीता पुत्र के मृत्यु का समय निकट आया। काशी के एक सेठ ने अपनी पुत्री के साथ उस ब्राह्मण पुत्र का विवाह कर दिया। पति-पत्नी के मिलन की रात उसकी मृत्यु की रात थी। यमराज नाग रूप धारण कर उसके प्राण हरने के लिए आये। उसके पति को डस लिया। पत्नी ने नाग को पकड़कर कमंडल में बंद कर दिया। तब तक उसके पति की मृत्यु हो गयी थी।

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पत्‍नी ने की देवी महामाया से प्रार्थना

ब्राह्मण की बेटे की पत्‍नी महामाया की भक्त थी। पति को जीव‍ित करने के लिए वह देवी मां की पूजा करने लगी। पूजा करते-करते एक महीना बीत गया। पत्‍नी के सतीत्‍व के आगे संपूर्ण सृष्टि में त्राहि-त्राहि मच गई। उधर यमराज कमंडल में बंद थे यम लोक की सारी गतविधियां भी रुक गईं थी। तब देवताओं ने महामाया देवी से यमराज को छुड़ाने की व‍िनती की। माता ने देवों को आश्‍वासन द‍िया और ब्राह्मण की बहू को दर्शन द‍िया।

तो महामाया ने ऐसे छुड़ाया यमराज को

महामाया ने ब्राह्मण बहू को दर्शन देकर कहा बेटी जिस नाग को तूने कमंडल में बंद किया है वह स्वयं यमराज हैं उनके बिना यम लोक के सारे कार्य रुक गये हैं। हे पुत्री यमराज को मुक्‍त कर दे। माता के आदेश का पालन करते हुए उसने कमंडल से यमराज को मुक्‍त कर दिया। कमंडल से बाहर न‍िकलते ही यमराज ने देवी मां और उस दुल्हन के सतीत्व को प्रणाम किया। माता की आज्ञा से यमराज ने उसके पति के प्राण वापस कर दिये तथा चिरंजीवी रहने का वरदान दिया और उसे चिरंजीव कहके पुकारा। तब से ही शादी के कार्ड पर लड़के के नाम के आगे चिरंजीव लिखने की परंपरा शुरू हुई।

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आयुष्‍मति शब्‍द की परंपरा भी शुरू की यमराज ने

कथा म‍िलती है क‍ि सदियों पहले आकाश धर नाम के एक राजा हुए। राजा काफी धर्म परायण थे। उनके जीवन में संपूर्ण सुख था केवल संतान सुख को छोड़कर। एक द‍िन महर्षि नारद उनसे म‍िलने आए तो राजा आकाश धर ने उनसे संतान सुख प्राप्ति का साधन पूछा। इसपर नारद जी ने कहा हे राजन आप सोने के हल से धरती का दोहन करके उस भूमि पर यज्ञ करिए। इससे आपको संतान की प्राप्ति जरूर होगी। राजा ने सोने के हल से पृथ्वी जोती। जोतते समय उन्हें भूमि से कन्या प्राप्त हुई।

जब कन्‍या को शेर ने अपना ग्रास बना ल‍िया

कथा के अनुसार जब राजा जब कन्‍या को लेकर महल की ओर चले तो उन्‍हें रास्‍ते में एक शेर द‍िखाई द‍िया। जो क‍ि कन्‍या को खाना चाहता था। राजा काफी डर गए। उसी समय डर के कारण राजा के हाथ से कन्या छूट गई शेर ने कन्या को मुख में रख लिया। लेकिन जैसे ही शेर ने कन्या को अपना ग्रास बनाया। वैसे ही शेर कमल पुष्प में परिवर्तित हो गया। उसी समय विष्णुजी प्रकट हुए और उन्‍होंने कमल को स्‍पर्श किया। स्पर्श करते ही कमल उसी समय यमराज बनकर प्रकट हुआ और वो कन्या पच्चीस वर्ष की युवती हो गई। राजा ने उस कन्या का विवाह विष्णुजी से कर दिया। यमराज ने उसे आयुष्‍मति कहके पुकारा और आयुष्‍मति होने का वरदान द‍िया। तभी से शादी के कार्ड पर कन्‍या के नाम के आगे आयुष्‍मति लिखा जाने लगा।

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