जानिए क्यों शुभ कार्य में और मृतक संस्कार के अंत में करवाते हैं सत्यनारायण कथा

धर्म शास्‍त्र में सत्‍यनारायण कथा

हिंदू धर्म शास्‍त्रों में सत्‍यनारायण कथा का व‍िशेष महत्‍व है। चाहे गृह शांति की बात हो या सुख-समृद्धि की। या फिर सुखद दांपत्‍य जीवन की। प्रत्‍येक शुभ कार्य से पहले सत्‍यनारायण कथा का आयोजन होता है। लेकिन क्‍या आप जानते हैं क‍ि मृतक संस्‍कार की समाप्ति के बाद भी सत्‍यनारायण कथा करवाई जाती है। यानी कि शुभ कार्य हो या मृतक संस्‍कार की समाप्ति दोनों ही समय पर इस कथा का व‍िशेष व‍िधान है। आइए जानते हैं क्‍यों की जाती है यह कथा और क्‍या है इसकी व‍िध‍ि और इसका महत्‍व?

यह है सत्‍यनारायण कथा की पूजा व‍िध‍ि

ज्‍योतिषियों के मुताबिक जो जातक सत्यनारायण की पूजा का संकल्प लेते हैं उन्‍हें द‍िन भर व्रत करना चाहिए। पूजा व‍िध‍ि के अनुसार सबसे पहले पूजन स्थल को गाय के गोबर से पवित्र करके वहां एक अल्पना बनाई जाती है। इसके बाद उसी के ऊपर पूजा की चौकी रखकर उसके चारों पाये के पास केले का वृक्ष लगाते हैं। इस चौकी पर शालिग्राम या ठाकुरजी या श्रीसत्यनारायण की प्रतिमा स्थापित करें। पूजा करते समय सबसे पहले गणपति की पूजा करें फिर इंद्राद‍ि, दशदिक्पाल की और क्रमश: पंच लोकपाल, सीता सहित राम, लक्ष्मण की, श्रीराधाकृष्ण की। इनकी पूजा के पश्चात ठाकुर जी व सत्यनारायण की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद लक्ष्मी माता की और अंत में महादेव और ब्रह्माजी की पूजा करें। पूजा के बाद सभी देवों की आरती करें और चरणामृत लेकर प्रसाद वितरण करें। पुरोहित जी को दक्षिणा एवं वस्त्र का दान करें साथ ही भोजन भी कराएं। पुराहित जी के भोजन के पश्चात उनसे आशीर्वाद लेकर ही जातक को भोजन करना चाहिए।

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कथा सत्यनारायण का महत्‍व

कलिकाल में सत्य की पूजा विशेष रूप से फलदायी होती है सत्य के अनेक नाम हैं, यथा-सत्यनारायण, सत्यदेव। धर्म शास्‍त्रों में कहा गया है कि सनातन सत्यरूपी विष्णु भगवान कलियुग में अनेक रूप धारण करके लोगों को मनोवांछित फल देंगे। सत्यनारायण के रूप में व्रत-पूजा का अनुष्ठान करने मनुष्य के सभी दु:खों का अंत हो जाता है। इसलिए व‍िवाह के पहले ओर बाद में, आयु रक्षा और सेहत से जुड़ी समस्‍याओं से राहत पाने के लिए और संतान के जन्‍म और उसकी सफलताओं पर सत्‍यनारायण कथा करवाई जाती है।

सत्‍यनारायण कथा का मुहूर्त

यूं तो कभी भी भगवान सत्यनारायण की पूजा करवाई जा सकती है। लेकिन पूर्णिमा, संक्रांति, बृहस्पतिवार, अथवा किसी भी बड़े संकट के आने पर यह पूजा करवाई जा सकती है। कथा के दिन स्नान करके धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएं और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। इस कार्य हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके सत्यनारायण भगवान की उपासना करें। इसके बाद सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।

मृतक संस्‍कार के बाद कथा का व‍िधान

धर्म शास्‍त्रों के मुताबिक क‍िसी की मृत्‍यु के बाद घर में सूतक लग जाता है। क‍िसी भी तरह की पूजा-पाठ भी नहीं की जाती है। ऐसे में जब सभी मृतक संस्‍कार संपन्‍न हो जाते हैं। तब भगवान व‍िष्‍णु की पूजा यानी क‍ि सत्‍यनारायण कथा करवाई जाती है। मान्‍यता है कि इस कथा के आयोजन से घर पुन: शुद्ध हो जाता है और पूजा-पाठ न‍ियमित रूप से शुरू हो जाता है। साथ ही शुभ कार्यों का आयोजन भी क‍िया जा सकता है। यही वजह है कि मृतक संस्‍कारों के बाद सत्‍यनारायण कथा का व‍िधान है।

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