जब शतरंज के इन चौसठ खानों को हल्‍के में लेना बादशाह को पड़ गया भारी

यह तब की बात है, जब पर्सिया में शिरम नाम का बादशाह हुआ करता था। बादशाह शिरम को शतरंज के खेल का बड़ा शौक था। ऐसा कोई दिन ना बीतता, जब दरबार के बाद शाम को बादशाह शतरंज ना खेलता हो। उसके इस शौक को देखकर उसके मंत्री ने एक दिन उसे बताया कि इस खेल के आविष्कारक पर्सिया में ही रहने वाले एक बुजुर्ग फकीर हैं, जिनका नाम सेसा है। यह सुनते ही बादशाह शिरम ने उस फकीर को इनाम देने के लिए दरबार में बुलाया।

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जब बुजुर्ग फकीर दरबार पहुंचे तो बादशाह बोला, ‘तुम्हारी इस जबर्दस्त खोज के लिए मैं तुमको पुरस्कार देना चाहता हूं। जो भी मांगना चाहते हो, मांग सकते हो।’ फकीर बोले, ‘महाराज, वैसे तो मुझे इस खेल के बारे में सुदूर पूरब के एक फकीर ने बताया था, लेकिन क्या वाकई मैं जो मांगूंगा, वह आप दे पाएंगे?’ यह सुनकर बादशाह शिरम बोला, ‘ऐसी कौन सी चीज है जो इस महान पर्सियन राज्य में उपलब्ध नहीं है? तुम जो भी मांगोगे, सब मिलेगा।’ फकीर बोले, ‘महाराज, शतरंज में 64 घर हैं। पहले घर के लिए मुझे गेहूं का केवल एक दाना चाहिए।’

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बादशाह चौंका और बोला, ‘बस एक दाना?’ सेसा बोले, ‘फिर दूसरे घर के लिए दो, तीसरे घर के लिए चार, चौथे घर के लिए आठ और इसी तरह से 64 घरों तक दाने बढ़ाते जाइए, मेरा इनाम पूरा हो जाएगा।’ ‘बस इतना ही?’ बादशाह ने चिढ़कर बोला, ‘सुबह तक तुम्हारा इनाम मिल जाएगा।’ फकीर सेसा मुस्कुराते हुए वापस लौट गए। इधर बादशाह के मंत्रियों ने हिसाब लगाया तो शतरंज के 64वें घर तक गेहूं के इतने दाने हो रहे थे, जो बादशाह के राज्य में तो क्या, पूरी धरती पर नहीं थे। बादशाह सेसा की इस शतरंज से हार गया, और तय कर लिया कि अब वह कभी शतरंज के खानों को हलके में नहीं लेगा।

संकलन : विद्या भारती