तीर्थ यात्रा पूर्ण कर जब घर पहुँचे तो बूढ़े ब्राह्मण की हिम्मत नहीं हुई कि वो अपने लड़कों के सामने बात कर सकें। उस नौजवान ब्राह्मण ने महीना भर कोई सूचना मिलने का इंतज़ार किया, लेकिन कोई सूचना नहीं मिली। वह उन बूढ़े ब्राह्मण के घर गया और बोला देखो बाबा आपने कहा था की मेरी शादी आपकी बेटी के साथ होगी। उनके लड़कों ने उसे धक्का दिया और दो-चार थप्पड़ लगाए कि तेरी सामर्थ क्या है कि तू हमारी बहन से शादी करने की बात सोच सके। उसने बोला कि आपके पिताजी ने ही कहा था। अब लड़कों का वह स्वरूप देख कर बाबा बदल गए। उन्होंने कहा कि मुझे ऐसा कुछ याद नहीं। उस नौजवान ब्राह्मण ने कहा, अरे! आपने गोपाल जी के सामने ये कहा था। उन्होंने पीट के उससे वहाँ से भगा दिया।
उस लड़के को इस बात का बहुत बुरा लगा की उसने अपनी तरफ से तो कहा नहीं था शादी के लिए, उन्होंने उसका अपमान भी किया। उसने पंचायत बुलाई और कहा कि इन्होंने हमें तीर्थ यात्रा के लिए प्रेरित किया, तीर्थयात्रा पर ले गए, मैंने इनकी सेवा की और इन्होंने ठाकुर जी के सामने मेरी शादी की बात कही। पंचायत ने बोला कि कोई और गवाही दे तब बात बनेगी। उसने बोला कि वहाँ तो केवल मैं, यह बूढ़े ब्राह्मण और ठाकुर जी ही थे। पंचायत ने कहा कि अगर ठाकुर जी गवाही दे दें तो तुम्हारी शादी कराइ जा सकती है। इस बात पर बूढ़ा ब्राह्मण भी राजी हो गया क्योंकि उन्होंने सोचा कि गोपाल जी थोड़ी ना आयेंगे गवाही देने। उन्होंने सोचा कि मूर्ति थोड़ी चलकर आएगी गवाही देने आएगी।
लड़के का साक्षी गोपाल के पास जाना
वह वृंदावन आया। उस दिन के लिए ठाकुर जी का शयन हो चुका था। वो बहुत परेशान हुआ, मंदिर का दरवाजा बंद था, उसने खटखटाया और कहा – सुनो गोपाल जी, मैं आपसे ये पूछने आया हूँ कि उन वृद्ध ब्राह्मण ने आपके सामने शादी की बात बोली थी ना।
दो-चार बार आवाज लगाई, कोई उत्तर नहीं आया। फिर वो बहुत जोर से बोला – देखो मैं आपको चैन से सोने नहीं दूँगा, मैं पैदल चलकर आया हूँ, भूखा भी हूँ, मेरी शादी की बात है, छोटी मोटी बात नहीं, आपको बोलना ही पड़ेगा।
ठाकुर जी ने अंदर से कहा, मूर्ति कहीं चलती है क्या। उसने कहा जब मूर्ति बोल रही है तो चलेगी क्यों नहीं। ठाकुर जी फँस गये। ठाकुर जी बाहर निकल कर आए। उसने देखा बहुत सुंदर नवकिशोर गोपाल जी, साक्षात ठुमक-ठुमक कर चलके आए। ठाकुर जी बोले देखो तुम्हारे भाव के कारण हम चलने के लिए राजी तो हैं। उसने गोपाल जी से पूछा कि आप उड़ीसा कैसे चलेंगे। गोपाल जी ने कहा, चलेंगे तो हम पैदल ही। आगे आगे तुम चलना, पीछे पीछे हम चलेंगे। हमारे नूपुरों की ध्वनि तुम्हें सुनाई देती रहेगी, अगर पीछे मुड़ के देख लिया तो हम वहीं खड़े हो जाएँगे, वहाँ से आगे नहीं बढ़ेंगे।
बात तय हो गई, चल दिये ठाकुर जी भक्त के पीछे। वो बीच-बीच में गोपाल जी को भोग लगाता रहा। जब अपने गांव के नजदीक पहुंचा तो नूपुर ही बजने की आवाज आना बंद होगी। भक्त ने मुड़कर देखा तो ठाकुर जी खड़े थे। ठाकुर जी ने कहा अब यहाँ से आगे मैं नहीं चलूँगा, तुम सबको बुलाकर यहीं लाओ।
साक्षी गोपाल
वो दौड़कर गाँव में गया और सभी को बुलाया कि वृंदावन के ठाकुर आये हैं साक्षी देने। भीड़ इकट्ठा हो गई साक्षात गोपाल जी को देखने के लिए। सब पंच भी वहाँ आ गये, अब ठाकुर जी को देखकर उन वृद्ध ब्राह्मण की कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हुई। ठाकुर जी उस भक्त के वचन की रक्षा के लिए सबके सामने बोले और गवाही दी और उसके बाद उस नौजवान की शादी हो गई।