जब पंडित का भेष धरकर चंद्रशेखर आजाद ने पुलिस को दिया चकमा

क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद तगड़े शरीर का होने के कारण कभी लालाजी, कभी मोटे-ताजे पंडितजी और कभी पहलवान का रूप धर लेते थे। पुलिस और सीआईडी उनके पीछे लगी रहती थी। उत्तर प्रदेश के अनेक नगरों में रेलवे स्टेशनों, सार्वजनिक स्थानों और पुलिस थानों पर तो उनके चित्र वाले पोस्टर चिपके होते थे, जिनमें उन्हें जीवित या मृत पकड़ लाने वाले को कई-कई हजार रुपये पुरस्कार में देने की घोषणा की जाती थी। वह हर बार चालाकी से कोई न कोई तिकड़म निकालकर बच जाते। कई बार तो वह जानबूझकर पुलिस से ही पंगा ले लेते थे।

एक बार वह लखनऊ में पंडित बने कहीं जा रहे थे। एक चौराहे के पास उन्होंने देखा कि एक सिपाही अपनी पगड़ी को एक तरफ रखकर आराम फरमा रहा है। आजाद को मजाक सूझा तो उन्होंने सिपाही से नजरें बचाकर होशियारी से पगड़ी उठा ली और सीधे थाने पहुंच गए। वहां दरोगा जी को नमस्कार कर उनके सामने मेज पर पगड़ी रखते हुए वह बोले, ‘यह सड़क पर पड़ी थी, इसे जमा कराने आया हूं। देख लो, आपके थानों का क्या हाल है?’ दरोगा जी ने आश्चर्य से पूछा, ‘तुमने ऐसा क्यों किया?’ आजाद बोले, ‘गुरुजी, मैं आपको यह बताने आया हूं कि आपकी पुलिस कितनी लापरवाह है। वह चंद्रशेखर जैसे क्रांतिकारी को कैसे पकड़ेगी, और साथ ही मुझे यह भी पता करना था कि यहां मेरे हुलिए पर किसी को शक तो नहीं है?’

दरोगा जी बोले, ‘पंडितजी, अगर शक होता तो आप क्या करते?’ इस पर आजाद हंसते हुए बोले, ‘अगर आप मुझ पर शक करते तो इस समय मैं 40 मील प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ रहा होता।’ इस पर दरोगा जी हंसने लगे और आजाद भी मुस्कुराते हुए बड़े आराम से बाहर चले गए। बाद में जब दरोगा जी को पता चला कि पगड़ी लाने वाले वह पंडितजी ही चंद्रशेखर आजाद थे, तो उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।

संकलन : रमेश जैन