जब चंद्रशेखर आजाद की ईमानदारी देख चनेवाला हुआ हैरान

‘दुश्मन की गोलियों का सामना हम करेंगे आजाद हैं, आजाद ही रहेंगे।’ ऐसा नारा देने वाले अमर शहीद चंद्रशेखर की उन दिनों आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। वह झांसी की एक कंपनी में मोटर गाड़ी चला कर अपने जीवन-यापन लायक भी नहीं कमा पा रहे थे। कभी-कभी उन्हें मात्र चने खाकर ही भूख शांत करनी पड़ती था। एक दिन ऐसा हुआ कि सारा दिन मोटर गाड़ी चलाने के बाद शाम को जब भूख ने सताया तो उन्होंने देखा कि उनके पास केवल एक इकन्नी ही बची है। तभी उन्हें भुने चने बेचने वाला दिखाई दिया। भूख मिटाने के लिए उन्होंने उस इकन्नी से चने खरीदने का फैसला किया। चने वाले के पास जाकर उससे एक इकन्नी के चने देने को कहा।

चने लेकर जब उन्होंने खाना शुरू किया तो उन्हें चनों के बीच एक इकन्नी भी दिखाई दी। आजाद बहुत चकित हो गए, खुश भी हुए। कुछ समय के लिए उनका मन डोल भी गया और सोचने लगे कि कल का काम भी चल जाएगा। चने खाते-खाते यही सब सोच रहे थे कि अचानक उनके मन में ख्याल आया- अगर मैं यह इकन्नी रख लेता हूं तो मेरा काम तो चल जाएगा पर हमेशा मुझे यह बात मन में चुभेगी कि मैंने किसी और का पैसा खा लिया। उनका विवेक बार-बार यह एहसास दिलाता रहा कि यह इकन्नी मेरी मेहनत की कमाई नहीं है तब यह फिर मेरी कैसे हुई? यह तो किसी और की मेहनत कमाई मेरे पास भूल से आ गई है।

यही सोचकर चंद्रशेखर आजाद चने वाले के पास गए और उसके हाथ पर इकन्नी रख कर बोले, ‘भाई! तुमने मुझे चनों के साथ एक इकन्नी भी डाल दी। अगर ऐसा करोगे तो कैसे कमाओगे? चने वाला कुछ बोलता तब तक आजाद उसकी हथेली पर इकन्नी रखकर चल दिए। चने बेचने वाला उस नौजवान की ओर देखता रह गया।

संकलन : निर्मल जैन