जब अपनी ईमानदारी को साबित करने के लिए राजा छत्रसाल के इस दरबारी ने किया मरने का नाटक

छत्रसाल महाराज अपनी न्यायप्रियता के लिए जाने जाते थे। उनके मंत्रियों में पंडित देशराज बड़े ईमानदार और परिश्रमी थे। वह दिन-रात राज्य की सेवा में समर्पण भाव से लगे रहते थे। इसलिए महाराज के बड़े प्रिय थे और सम्मान भी पाते थे। इस बात से कुछ मंत्री उनसे ईर्ष्या करने लगे। उधर महाराज को राज्य में भ्रष्टाचार की कुछ खबरें मिलीं तो उन्होंने मंत्रियों की बैठक बुलाई और सभी मंत्रियों से इस पर अपने विचार प्रकट करने को कहा। ईर्ष्या करने वाले मंत्री तो ऐसे ही मौके की तलाश में थे। उन्होंने सारा दोष मंत्री पंडित देशराज पर मढ़ दिया।

राजा असमंजस में पड़ गए। लेकिन मौके की नजाकत समझते हुए महाराज ने देशराज को अपने पास बुलाया और कहा कि ये लोग तुम्हारे ऊपर जो आरोप लगा रहे हैं, उसके निराकरण के लिए तुम्हें एक सप्ताह का समय दिया जाता है। तुम्हें खुद को निर्दोष साबित करना पड़ेगा, नहीं तो दंड भुगतना पड़ेगा। देशराज घर आकर सोच में पड़ गए। वह मंत्रियों की चाल समझ गए। आखिर उन्हें एक उपाय सूझा। उन्होंने राजा को पत्र लिखा, ‘राजन! अपमानित होने से मरना अच्छा है’ और स्वयं को घर में कैद कर लिया। कुछ दिनों तक देशराज की कोई खबर नहीं मिली तो राजा ने उन्हें मृत समझ लिया।

राजा ने देशराज की शोकसभा आयोजित की। देशराज वेष बदलकर शोकसभा में पहुंच गए। शोकसभा में अनेक मंत्रियों ने देशराज की कर्तव्यनिष्ठा की सराहना की। यहां तक कि शिकायत करने वाले मंत्रियों ने भी उनकी ईमानदारी और देशभक्ति के गुण गाए। देशराज तुरंत अपने असली रूप में आकर राजा के सामने खड़े हो गए। उन्हें देख विरोधियों के होश उड़ गए। देशराज ने राजा से कहा, ‘देखा महाराज, इन लोगों की राय कैसे बदल गई।’ राजा समझ गए। उन्होंने शिकायत करने वाले मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया और देशराज को सम्मानित किया।

संकलन : रमेश जैन