मथुरा प्रसाद मिश्र को दिनकर जी ने पत्र में लिखा- ‘यह तो दिनकर का कृत्य नहीं, अमिताभ देव का दुष्ट कर्म।’ इशारा यह था कि इसे दिनकर नहीं, अमिताभ के नाम से छापो। लेकिन पत्र डाकघर से सीधे सरकारी दफ्तर में पहुंच गया। उसकी कॉपी लेने के बाद वह ‘जनता’ ऑफिस में भेजा गया। कविता ‘जनता’ में अमिताभ नाम से ही छपी। महीने भर बाद कविता सेंसर हो गई, मगर बेनीपुरी जी ने इसकी खबर दिनकर जी को नहीं दी। कुछ दिन बाद मोतिहारी किसान सम्मेलन में दिनकर जी और बेनीपुरी की भेंट हुई।
जब दिनकर जी ने यह बात चलाई तो बेनीपुरी जी बोले- ‘अरे, नौकरी छूट जाए तो क्या हुआ? तुम हमारे गिरोह में आ मिलना। हम तो चाहते ही हैं कि तुम्हारी नौकरी छूट जाए।’ लेकिन नौकरी तब भी नहीं छूटी। सरकार ने फिर एक चेतावनी भिजवाई। इस बार दिनकर जी के जिला मजिस्ट्रेट खान बहादुर अमीर थे। पेशी हुई तो दिनकर जी ने कहा, ‘हर गुमनाम चीज की जवाबदेही मुझ पर ही क्यों डाली जाती है?’ अमीर साहब हंसकर बोले, ‘आपका बचपना नहीं जाएगा। जरा संभलकर चला कीजिए।’ खुद अमीर साहब भी देशभक्त थे, तो उन्होंने दिनकरजी को छोड़ दिया। बाद में उस कविता की गांधी जी ने भी काफी प्रशंसा की थी।
संकलन : पावनी लोधियाल