जगन्नाथजी पुरी: 90 दिनों में बना रथ, उल्टी दिशा में लहराता है ध्वज

इतने दिन में तैयार हुआ है जगन्नाथजी का रथ

इस साल करीब 200 कारीगरों ने तैयार किया है जगन्नाथजी का रथ। इस रथ को तैयार करने में करीब 90 दिन यानी 3 महीने का समय लगा। इस रथ को तैयार करने में मुख्य रूप से नीम की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है।

तीनों भाई-बहन के लिए बनते हैं रथ

इस यात्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ तैयार किए जाते हैं। ये रथ जगन्नाथजी, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बालभद्र या बलदेवजी के होते हैं। तीनों भाई-बहन रथ पर सवार होकर मौसी के घर जाते हैं।

इस तिथि से शुरू हो जाती हैं तैयारियां

इन तीनों रथों को बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया के शुभ मुहूर्त से होती है। हर साल आयोजित होनेवाली इस यात्रा के लिए हर साल नए रथ बनाए जाने की परंपरा है।

असंभव है मंदिर का गुंबद देख पाना

जगन्नाथजी के मंदिर की ऊंचाई लगभग 215 फीट है और यह लगभग 4 लाख वर्ग फीट एरिया में फैला हुआ है। खड़े रहकर इस मंदिर का गुंबद देख पाना असंभव लगता है।

कभी कम नहीं पड़ता प्रसाद

इस मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है। कहते हैं, यहां 1 साल तक के लिए अन्न भंडार हमेशा स्टोर रहता है। इसलिए कितने भी श्रृद्धालु यहां आ जाए, कभी भोजन कम नहीं पड़ता।

नहीं बनती इस मंदिर की परछाई

इस मंदिर की खास बात यह है कि इसकी कभी परछाई नहीं बनती है। जबकि अन्य किसी भी मंदिर की परछाई बनती है लेकिन इस मंदिर की परछाई दिन के किसी भी वक्त देखा जाना संभव नहीं हुआ है।

यह भी है मान्यता

जानकारी के मुताबिक, इस मंदिर के ऊपर कभी कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया। यह भी कहा जाता है कि पुरी मंदिर के ऊपर से विमान भी नहीं गुजरते हैं।

यहां समुद्र का शोर नहीं आता

मंदिर के सिंहद्वार से प्रवेश करने पर समुद्र की लहरों की आवाज या कोई भी ध्वनि नहीं सुनाई देती है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर के शीर्ष पर लगा ध्वज सदैव हवा की उल्टी दिशा में लहराता है।