गुरु पूर्णिमा 2019ः गुरु पूजन का मूल विधि-विधान और नियम जानें

(पं० श्रीराम शर्मा आचार्य)आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। हिंदू धर्म में प्रचलित अन्य सभी त्योहारों की अपेक्षा इसका महत्व अधिक माना गया है; क्योंकि सन्मार्ग के प्रेरक सभी व्रतों, पर्वों, त्योहारों में लाभ तभी उठाया जा सकता है, जब सद्गुरुओं द्वारा उनकी उपयोगिता एवं आवश्यकता सर्वसाधारण को अनुभव कराई जा सके। सद्गुरु की महिमा गाते-गाते शास्त्रकार थकते नहीं। मनीषियों ने निरंतर यही कहा है कि आत्मिक प्रगति के लिए गुरु की सहायता आवश्यक है। इसके बिना आत्म-कल्याण का द्वार खुलता नहीं और न ही साधन सफल होता है।कितने प्रकार के होते हैं गुरुसामान्य अर्थ में शिक्षक को गुरु कहते हैं। साक्षरता का अभ्यास कराने वाले, शिल्प, उद्योग, कला, व्यायाम आदि क्रियाकौशलों की शिक्षा देने वाले गुरु ही होते हैं। तीर्थगुरु, ग्रामगुरु कितने ही नियमित वर्ग भी बन गए हैं। असाधारण चातुर्य में प्रवीण व्यक्ति को भी व्यंग में ‘गुरु’ कहते हैं जिसका वास्तविक अर्थ होता है हरफनमौला, तिकड़मी या धूर्तराज। कितने ही धर्म की आड़ में चेली-चेला बनाने का व्यवसाय परंपरा के आधार पर ही चलाते हैं। हमारे पिता तुम्हारे पिता के गुरु थे, इसलिए हम तुम्हारे गुरु बनेंगे। यह दावा करने वाले और इसी तर्क से प्रभावित करके व्यवसाय चलाने वाले गुरु भी इन दिनों मौजूद है। परंपरावादी लोगों के गले यह दलील उतर भी जाती है और वे योग्य-अयोग्य का विचार किए बिना इन तथाकथित गुरुओं को नमन करते हुए भेंट-पूजा करते रहते हैं।लेकिन जिस सद्गुरु का माहात्म्य-वर्णन शास्त्रकारों ने किया है, वह वस्तुत: मानवीय अन्त:करण ही है। निरंतर सद्शिक्षण और उर्ध्वगमन का प्रकाश दे सकना इसी केंद्रतत्व के लिए संभव है। बाहर के गुरु-शिष्य की वास्तविक मन:स्थिति का बहुत ही स्वल्प परिचय प्राप्त कर सकते हैं। कोई बाहरी गुरु हर समय शिष्य के साथ नहीं रह सकता, जबकि उसके सामने निरूपण और निराकरण के लिए अगणित समस्याएं पग-पग पर, क्षण-क्षण में प्रस्तुत होती रहती हैं। इनमें से किसका, किस प्रकार समाधान किया जाए, इसका मार्गदर्शन करने के लिए किसी व्यक्ति विशेष पर निर्भर नहीं रहा जा सकता, भले ही वह कितना ही सुयोग्य क्यों न हो।अपने अन्त:करण को निरन्तर कुचलते रहने, उसकी पुकार को अनसुनी करते रहने से आत्मा की आवाज मंद पड़ जाती है। पग-पग पर अत्यन्त आवश्यक और अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रकाश देते रहने का उसका क्रम शिथिल हो जाता है। जबकि यह आत्मिक प्रखरता ही असली सद्गुरु है। इसी का नमन-पूजन और परिपोषण करना गुरु-भक्ति का यथार्थ स्वरूप है।अस्तु, ‘गुरु’ शब्द का अर्थ किसी बाहरी गुरु की अपेक्षा अपने अन्त:करण की सुनना अधिक उचित बैठता है। अत: अपने अन्त:करण को उज्जवल करके उस शुद्ध हुई अन्तरात्मा की आवाज पर ध्यान देना चाहिए। गुरु पूर्णिमा के पवित्र अवसर पर चलिए, हम स्वयं को पवित्र करने और अपने अंदर के गुरु से मार्गदर्शन लेना प्रारंभ करते हैं।गुरु पूर्णिमा पूजन संबंधी नियमइस वर्ष गुरु पूर्णिमा पर ग्रहण भी लग रहा है और शाम करीब 4 बजे से ग्रहण का सूतक लग जाएगा इसलिए जो लोग अपने आध्यात्मिक और आत्मिक गुरु को पूजना चाहते हैं वे सूतक काल से पहले ही पूजन कर लें।जहां तक गुरु पूर्णिमा पर मुहूर्त की बात है तो धर्मग्रंथों में बताया गया है कि जिस दिन पूर्णिमा तिथि त्रिमुहूर्त व्यापिनी हो उस दिन इस व्रत को मनाना चाहिए। इसी नियम के अनुसार इस वर्ष 16 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का व्रत देश भर में मनाया जाएगा।-(गायत्रीतीर्थ शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार)