खुल गए बद्रीनाथ के कपाट, जानें इस मंदिर के बारे में खास बातें

बाबा केदारनाथ धाम के बाद आज बद्रीनाथ के कपाट सुबह 06 बजकर 15 मिनट पर वैदिक मंत्रोचार एवं शास्त्रोक्त विधि-विधान से खुल गए हैं। जबकि बाकी तीनों धाम गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ के कपाट पहले ही खुल चुके हैं। जैसे ही कपाट खुले हर तरफ बद्रीनाथ के जयकारे लगे, जिससे धाम गूंज उठा और भक्तों ने दिव्य ज्योति के भी दर्शन किए। इस अवसर पर मंदिर को कई क्विंटल फूलों से भव्य रूप से सजाया गया। अब से हर रोज भगवान बद्री विशाल की पूजा-अर्चना होगी। रविवार को बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने से पहले होने वाला गरुड़ छाड़ मेला बदरीनाथ के रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी की ओर से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के बाद संपन्न हो गया। इस दौरान श्रद्धालुओं ने भगवान बद्रीनाथ को गरुड़ में बैठाकर बदरीनाथ धाम के लिए रवाना कर दिया।

कपाट खुलते ही हुए दिव्य ज्योति के दर्शन
कपाट खुलते ही बदरीनाथ के भक्तों में गजब का उत्साह देखने को मिला। बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं को अनुमति मिलते ही दिव्य ज्योति के दर्शन के लिए पहुंचे। चार महीने बाद धाम जय बद्रीनाथ के जयघोष से गुंजायमान हो गया। कहा जाता है कि मंदिर के कपाट बंद करते समय जो ज्योति जलाई जाती है, वह कपाट खुलने के बाद भी जलती हुई मिलती है। इसलिए भक्त उस दिव्य चमत्कार के दर्शन करने के लिए यहां पहुंचते हैं। चार धाम यात्रा में बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ और रामेश्वरम हैं। लेकिन बद्रीनाथ के दर्शन करने के बाद केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री के भी दर्शन करने होते हैं इसलिए इन चारों को मिलाकर छोटा चार धाम कहा गया है।

खुल गए बदरीनाथ धाम के कपाट, पंच केदार की तरह विराजते हैं पंच बदरी

ऐसा है सृष्टि का आठवां बैकुंठ
बद्रीनाथ को सृष्टि का आठवां बैकुंठ धाम कहा गया है, जहां भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में रहते हैं और 6 माह जागते हैं। बद्रीनाथ धाम में भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति शालिग्राम शिला से बनी हुई है, जो चतुर्भुज ध्यान मुद्रा में है। यहीं पर नर-नारायण विग्रह पूजा की जाती है और अखंड दीप जलता है, जो अचल ज्ञान ज्योति का प्रतीक है। यह विशाल मंदिर प्रकृति की गोद में स्थित है, जिसे देखकर ही सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही भगवान बद्रीनाथ के दाहिनी ओर कुबेर की मूर्ति भी है और उनके सामने उद्धव जी और उत्सव मूर्ति विराजमान हैं। उत्सव मूर्ति को शीतकाल में जोशीमठ ले जाई जाती है और उन्हीं के पास ही चरण पादुका हैं। भगवान बद्रीनाथ के बायीं ओर नर-नारायण की मूर्ति है और इनके समीप ही श्रीदेवी और भूदेवी विराजमान हैं। आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। बद्रीनाथ मंदिर के पास ही एक मंदिर है, जिसमें बद्रीनाथ या विष्णु की वेदी है।

लुप्त हो जाएगा बद्रीनाथ धाम
पुराणों में बताया गया है कि भविष्य में बद्रीनाथ के दर्शन नहीं होंगे क्योंकि माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ के दर्शन पूरी तरह बंद हो जाएंगे। साथ ही बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ धाम भी पूरी तरह लुप्त हो जाएंगे और सालों बाद भविष्य में भविष्य बद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा। मान्यता है कि जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ साल दर साल पतला होता जा रहा है, जिस दिन यह हाथ लुप्त हो जाएगा, उस दिन बद्री और केदारनाथ तीर्थ स्थल लुप्त होना प्रारंभ हो जाएंगे।