खाने को लेकर इस तरह की हरकत कर चुके थे स्वामी विवेकानंद

संकलन: दिलीप लाल
जब हम महान लोगों की जीवनी पढ़ते हैं तो हमारे सामने उनके जीवन के कई ऐसे पहलू भी आते हैं, जो हमारे मन में बसी उनकी छवि से मेल नहीं खाते। हम उन्हें शरारतें करते या छोटे-मोटे छल करते देख चौंक जाते हैं। लेकिन उनका वह व्यवहार उन्हें कहीं से छोटा नहीं बनाता बल्कि उनकी सहजता को ही सामने लाता है। वह बताता है कि वे भी हाड़-मांस के बने आम लोग ही थे, जिन्होंने अपने भीतर असाधारण गुण विकसित किए। अब जैसे स्वामी विवेकानंद खाने-पीने के बड़े शौकीन थे। वे अच्छा खाने के लिए कुछ भी कर सकते थे।

उनके बचपन की एक घटना है। जिस मोहल्ले में वह रहते थे, वहां कैलाश नाम का एक व्यक्ति खाने का तरह-तरह का सामान बेचने आता था। कैलाश के आते ही बच्चों की भीड़ लग जाती थी। कुछ बच्चे घर से पैसे ले आते और कुछ बच्चे अपने पास से ही दो पैसे, चार पैसे मिलाकर एक साथ कुछ खरीद लेते थे और आपस में उसे बांट लेते थे।

एक बार की बात है। कैलाश के आने पर नरेंद्र (स्वामीजी) की मंडली ने पैसे मिलाए। उस मंडली में उनके भाई, रिश्ते के चाचा और कई मित्र थे। नरेंद्र को गाजा (एक प्रकार की मिठाई) बहुत पसंद थी। उनके आग्रह पर इस बार गाजा खरीदना तय किया गया। कैलाश ने पत्ते के एक दोने में तौलकर गाजा दे दिया। अब गाजे का बंटवारा शुरू हुआ। नरेंद्र को जितना गाजा मिला, उससे वह संतुष्ट नहीं थे। अभी बांटने का काम चल ही रहा था कि उन्हें शरारत भरा एक उपाय सूझा।

नरेंद्र ने अपने हिस्से का एक गाजा तपाक से अपनी जीभ से सटाकर उस दोने में रख दिया जिस पर उनके साथियों का हिस्सा रखा हुआ था। फिर बनावटी अफसोस जताते हुए बोले, ‘अरे, तुममें से किसी ने गाजा नहीं खाया। ये तो सारा जूठा हो गया।’ सभी ने नाराज होकर नरेंद्र के लिए गाजा छोड़ दिया और उन्होंने मजे से जी भरकर खा लिया।