केवल ज्ञान से नहीं बल्कि इस तरह के काम से भी प्रसिद्ध हुए थे ईश्वरचंद्र विद्यासागर

संकलन: ललित गर्ग
ईश्वरचंद्र विद्यासागर संस्कृत भाषा के पंडित थे। उनकी ख्याति का कारण केवल उनका ज्ञान ही नहीं बल्कि उनका विशाल हृदय भी था। वह अपनी विनम्रता, सदाशयता और परोपकार भावना की बदौलत सभी के प्रिय बने हुए थे। एक बार कोलकाता के संस्कृत कॉलेज में संस्कृत-व्याकरण पढ़ाने के लिए एक अध्यापक का स्थान खाली हुआ। स्वाभाविक था कि कॉलेज के प्राचार्य को सर्वप्रथम ईश्वरचंद्र विद्यासागर का ध्यान आया। उन्होंने ईश्वरचंद्र के पास पत्र भिजवाया। उस पत्र में उन्होंने आग्रह किया कि वह संस्कृत अध्यापक का पद ग्रहण करें, इससे कॉलेज गौरवान्वित होगा।

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पत्र पढ़ने के बाद ईश्वरचंद्र ने एक क्षण विचार किया और अपनी असहमति लिखकर भेज दी। उन्होंने लिखा कि आपको संस्कृत और व्याकरण पढ़ाने वाले अध्यापक की आवश्यकता है। मैं सोचता हूं कि संस्कृत और व्याकरण में मैं इस नगर का योग्यतम व्यक्ति नहीं हूं। इस विषय में मुझसे अधिक विद्वान मेरे मित्र तारक वाचस्पति हैं। यदि उनकी नियुक्ति कर सकें तो यह आपकी तरफ से योग्यतम व्यक्ति का चयन होगा और इससे मुझे बहुत प्रसन्नता होगी। ईश्वरचंद्र का पत्र जब कॉलेज के प्रबंधक के पास पहुंचा तो पत्र पढ़कर उनका मस्तक झुक गया। वह सोचने लगे कि यह व्यक्ति कितना महान है, जो विद्वान किसी दूसरे व्यक्ति को अपने से बड़ा बताए, वह वास्तव में विशाल हृदय है।

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ईश्वरचंद्र विद्यासागर के प्रस्ताव को कॉलेज की प्रबंध समिति ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। जल्दी ही कॉलेज में संस्कृत-व्याकरण पढ़ाने के लिए तारक वाचस्पति की नियुक्ति कर दी गई। इसकी सूचना उन्होंने ईश्वरचंद्र विद्यासागर को भी दी। मित्र की नियुक्ति का समाचार पाकर ईश्वरचंद्र विद्यासागर को हार्दिक प्रसन्नता हुई। ईश्वरचंद्र ने उन्हें सारी घटना सुनाई। वाचस्पति उनकी यह बात सुनकर गदगद हो उठे। उन्होंने मित्र को हृदय से लगा लिया और बोले, ‘ईश्वरचंद्र, तुम्हें देखकर मुझे गर्व है कि आज भी संसार में इतने विनम्र, विद्वान और परोपकारी व्यक्ति हैं।’