केदारनाथ का नाम कैसे पड़ा केदार, जानें 11वें ज्योतिर्लिंग के बारे में रोचक बातें

केदानाथ धाम, हिमालय की गोद में स्थित भगवान शिव की भक्ति का यह धाम खूबसूरत प्राकृतिक दृश्‍यों के साथ ही तमाम पौराणिक कथाओं को समेटे हुए है। 6 मई शुक्रवार को केदारनाथ मंदिर के कपाट भक्‍तों के लिए खोल दिए जाएंगे और फिर शुरू होगी केदारनाथ यात्रा। भगवान शिव के कई प्रमुख नामों में से एक केदारनाथ भी 12 ज्‍योतिर्लिंग में से एक 11वें स्‍थान पर है। भगवान शिव का नाम केदारनाथ क्‍यों पड़ा और क्‍या है इस मंदिर का इतिहास आज हम इसके बारे में रोचक बातें जानेंगे…

तो इस तरह यहां भगवान शिव बन गए केदारनाथ

पौराणिक ग्रंथों में केदारनाथ को लेकर यह कथा मिलती है कि एक बार सतयुग में भगवान विष्‍णु ने नर और नारायण के रूप में अवतार लिया और अलकनंदा नदी के किनारे स्थित नर और नारायण पर्वत पर कठोर तपस्‍या करने लगे। इनकी तपस्‍या से शिवजी प्रकट हुए और वर मांगने को कहा। तब नर और नारायण ने शिवजी से कहा कि हे प्रभु हमें किसी और चीज चाहत नहीं है बस आप यहां आकर बस जाएं। तब भगवान शिव ने खुद को शिवलिंग के रूप में खुद को प्रकट करने का वरदान दिया और स्‍वयंभू शिवलिंग के रूप में स्‍थापित हो गए। जिस स्‍थान पर शिवलिंग प्रकट हुआ, वहां पर केदार नामक राजा का सुसाशन था और भूमि का यह हिस्‍सा केदार खंड कहलाता था। तो इस प्रकार से भगवान शिव के इस ज्‍योतिर्लिंग को केदारनाथ कहा गया।

शिवपुराण में बताई गई है यह बात

शिवपुराण में केदारनाथ की पावन भूमि की महिमा के बारे में बताया गया है कि जो भी वक्‍त यहां पर मृत्‍यु को प्राप्‍त करते हैं उनके लिए सीधे मोक्ष के द्वार खुलते हैं और सीधा शिवलोक में स्‍थान मिलता है।

पांडवों ने रखी थी मंदिर की नींव

कहते हैं कि द्वापर युग में सबसे पहले पांडवों ने इस मंदिर की खोज की थी। माना जाता है कि पापों से मुक्ति पाने के लिए शिवजी की खोज में पांडव यहां तक आ पहुंचे। मान्‍यता है कि पांडवों के वंशज जनमेजय ने मंदिर की सबसे पहले आधारशिला रखी थी। उसके बाद आदिशंकाराचार्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।

इ‍सलिए यहां पर बैल की पीठ के जैसी है शिवलिंग

कहते हैं कि यहां पर पांडवों के तपस्‍या करने के बाद शिवजी ने उन्‍हें बैल के रूप में दर्शन दिए थे। फिर पांडवों ने भोलेबाबा से वहीं पर बस जाने का आग्रह किया तो शिवजी बैल के रूप में इसी स्‍थान पर बैठ गए और शिवलिंग के रूप में स्‍थापित हो गए। इसी कारण यहां पर शिवलिंग बैल की पीठ के जैसा दिखता है।

वर्ष 2013 में जुड़ गया नया अध्‍याय

वर्ष 2013 में जब यहां भीषण प्राकृतिक आपदा आई थी तो एक विशालकाय शिला ने मंदिर पर बाढ़ का प्रभाव नहां पड़ने दिया। तब से इस विशालकाय शिला को देव शिला के रूप में पूजा जाने लगा और मंदिर के इतिहास में एक नया अध्‍याय जुड़ गया।