एक दिन किशोर पुत्र अपने गांव में भाप का इंजन चलता देखा। उसने जान लिया कि अब गांव में उसका कोई भविष्य नहीं है। 16 की उम्र में गांव छोड़कर वह भाग निकला और डेट्रायट पहुंचा। वहां उसे रेल के डिब्बे बनाने वाले कारखाने में काम मिला। वहां एक मशीन खराब हो गई थी, जिसे किशोर ने आधे घंटे में ठीक कर दिया। अब बाकी कारीगरों में हीन भावना न आ जाए, इसलिए उसे छह दिन में ही निकाल दिया गया। अब किशोर फिर से सड़क पर था। सड़क पर अचानक उससे एक बालक टकरा गया। टक्कर से उसके झोले में रखी घड़ियां टूट गईं।
किशोर ने उसे दिलासा दिया और उसके पिता की दुकान पर जाकर सारी घड़ियां ठीक कर दीं। दुकानदार बहुत खुश हुआ। उसने उसे काम पर रख लिया। लेकिन वहां भी उसकी कम उम्र आड़े आई। लोग नाराज न हों, इसलिए उसे दुकान के पीछे छुपकर घड़ियां बनानी पड़तीं। उसने वहां काम छोड़ दिया और एक बिजलीघर में काम करने लगा। वहां उसने पेट्रोल से चलने वाली एक गाड़ी बनाई। गाड़ी का नाम ‘999’ रखा। उन्हीं दिनों अमेरिका में कार रेस होने वाली थी। उसमें उसकी कार जीत गई। इस किशोर का नाम था हेनरी फोर्ड। कारों की दुनिया में आज भी इस नाम का सिक्का चलता है।
संकलन : पावनी लोधियाल