कश्मीरी पंडित छोड आए इन मंदिरों को, जानें कौन करते हैं अब यहां पूजा

‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म बनने के बाद चारों तरफ कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्यार की बातें हो रही हैं। किस तरह उनको उनके ही घरों से निकाल दिया गया और दर-दर भटकने के लिए छोड़ दिया। इस घटना के बाद कई मंदिर बंद कर दिए हैं और कुछ मंदिरों में मुस्लिम समुदाय के लोग पूजा करते हैं। इन मुस्लिम पुजारियों ने आदर सत्कार के साथ कश्मीरी पंडितों की विरासत को संभालकर रखा है। यही पुजारी मंदिर की देखरेख और ईश्वर की सेवा करते हैं। दरअसल इन मंदिरों में तो कुछ मंदिर ऐसे हैं, जो 900 साल पुराने हैं। आइए जानते हैं इन मंदिरों के बारे में…

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पयार शिव मंदिर
कश्मीर के पुलवामा क्षेत्र में एक शिव मंदिर स्थित है, जो पयार शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का जिम्मा पहले कश्मीरी पंडितों के पास था लेकिन अब गुलाम नबी शेख के परिवार द्वारा इस मंदिर की देखभाल की जाती है। पयार गांव करीब 350 परिवारों का एक मुस्लिम गांव है और यह मंदिर नदी की धारा पर स्थित है। इस क्षेत्र को नोबागरी टेबललैंड कहा जाता है। यह मंदिर 1500 साल पुराना बताया जाता है। मुस्लिम गांव के लोग मंदिर की देखभाल और सुरक्षा करते हैं और शेख परिवार द्वारा साफ-सफाई के साथ पूजा-पाठ का काम किया जाता है। ग्रामीण लोग इस मंदिर की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं और कई बार तो कई तो इस मंदिर के लिए जान भी गंवा चुके हैं। यह मंदिर एक दुर्लभ सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है और भारतीय संस्कृति का नमूना। जहां एक मुस्लिम गांव के लोग मंदिर की देखभाल के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

गोपी तीर्थ शिव मंदिर
भारत को अपनी एकता और अखंडता के लिए जाना जाता है और कश्मीर का यह मंदिर उसका अच्छा उदाहरण है। श्रीनगर के जाबरावां पहाड़ियों में एक शिव मंदिर स्थित है, जो गोपी तीर्थ मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर 900 साल पुराना बताया जाता है। कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद यह मंदिर खाली हो गया था और इस मंदिर को तोड़ने वाले थे, तभी गांव के मुस्लिम परिवारों ने इस मंदिर को बचाया और फिर इस मंदिर का जिम्मा मुस्लिम पिता-पुत्र ने लिया। बताया जाता है कि 900 साल पहले जय सूर्या ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। 34 साल के निसार अहमद अलाई कई सालों से इस मंदिर की देखभाल कर रहे हैं। निसार न तो बोल सकते हैं और न ही सुन सकते हैं। यह पूरे दिन मंदिर की साफ-सफाई और अन्य चीजों में लगे रहते हैं। निसार और निसार के पिता सालों से मंदिर की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। गांव के लोगों ने बताया कि अगर पिता-बेटे किसी कारणवश नहीं होते हैं और गांव के अन्य लोग मंदिर का रखरखाव करते हैं।