कविता लिखने में इतने मशगूल थे टैगोर कि लुटेरे का चाकू देखकर भी नहीं डरे

कोलकाता के निकट शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय के संस्थापक गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर एक दिन कविता लेखन में इतने मशगूल थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कब एक लुटेरा चाकू लेकर उनके कमरे में घुस आया है। उन्हें देखकर लुटेरे को लगा कि यह व्यक्ति मुझे समझ नहीं पा रहा है कि मेरा इरादा कितना खतरनाक है। जब उन्होंने लुटेरे की तरफ नजर नहीं डाली तो उसने चिल्लाकर कहा, ‘अपनी कीमती चीजें मेरे हवाले कर दो, नहीं तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा।’

गुरुदेव ने लुटेरे की तरफ देखा तक नहीं। उसकी बात सुनकर धीमे स्वर में इतना ही कहा, ‘मेरे लेखन कार्य में बाधा मत डालो, कुछ समय इंतजार करो, मुझे कुछ वक्त दे दो ताकि में अपनी कविता पूरी कर सकूं।’ इसके बाद रवींद्रनाथ टैगोर फिर से पहले की तरह लेखन कार्य में व्यस्त हो गए। कुछ समय बाद गुरुदेव ने अपना कार्य पूरा कर लिया, तब उन्होंने दरवाजे की तरफ नजर डाली। उन्हें यह देखकर हैरानी हुई कि जो व्यक्ति लूटपाट करने आया था, थोड़ी देर पहले उन्हें जान से मारने की धमकी दे रहा था, वह चाकू एक तरफ फेंक कर सिर झुकाए बैठा है!

लुटेरे ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से कहा, ‘मुझे माफ कर दीजिए, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई आदमी पहचानने में। आप अपने काम में इतना डूबे हुए थे कि आपनी जान की भी परवाह नहीं की और मेरी धमकी भी अनसुनी कर दी। चाकू देखकर भी आप भयभीत नहीं हुए और पूरी एकाग्रता से अपना काम करते रहे। यह मेरे लिए आश्चर्यजनक बात थी। मैं हैरत में हूं। आप जैसा आदमी तो विरला ही होता है, हजारों में एक होता है। इसलिए अब आप मुझे रास्ता दिखाइए। मेरा स्थान आपके चरणों में है।’ महापुरुषों में ऐसे ही कुछ विशिष्ट गुण होते हैं जो उन्हें साधारण से असाधारण बना देते हैं।

संकलन : विवेक शुक्ला