कंफ्यूशियस की अदालत में चोर और साहूकार को मिली बराबर सजा, यह था कारण

चीन के सुप्रसिद्ध विचारक, दार्शनिक एवं मनीषी कन्फ्यूशियस न्यायप्रिय व्यक्ति थे। उनकी न्यायप्रियता की चारों तरफ चर्चा थी। अक्सर उनकी अदालत में जटिल से जटिल मामले आते और वे जो न्याय करते, वह सर्वमान्य होता। एक दिन उनकी अदालत में चोरी का मामला आया। चोरी की गई संपत्ति सहित चोर पकड़ा गया। उन्होंने चोर को छह महीने की सजा दी और छह महीने की सजा उस साहूकार को दी, जिसके माल की चोरी हुई थी। साहूकार यह फैसला सुनकर हैरान रह गया। बोला, ‘मेरी संपत्ति की चोरी हुई और मुझे ही सजा दी जा रही है, उस चोर के बराबर। यह कहां का न्याय है?’

कन्फ्यूशियस ने कहा, ‘यह मानवता का न्याय है। तुम्हारे पास इतनी अधिक संपत्ति का इकट्ठा होना ही चोरी का बुनियादी कारण है। इस गांव में तुम्हारे पास इतनी अधिक संपत्ति इकट्ठी हो गई कि बाकी लोगों को चोरी करनी पड़ रही है, मेरे लिए यह भी एक आश्चर्य की बात है और मेरी दृष्टि में अपराध की जड़ भी यही है। धन का यह असमान वितरण ही अपराध का कारण है। आदर्श एवं स्वस्थ समाज वही है, जिसमें अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच का भेद-भाव नहीं होता। जहां इस तरह के भेदभाव होते हैं, वहां अपराध बढ़ते हैं। एक आदमी भूखा रहे और दूसरे के पास अकूत संपदा हो और वह धन का बेहूदा प्रदर्शन करे, यही चोरी का कारण है। अतः जब तक कारण को नहीं मिटाया जाएगा, वास्तविक न्याय नहीं हो पाएगा।’

कन्फ्यूशियस ने जो फैसला सुनाया, उससे सभी सहमत हुए। साहूकार भी उनके तर्क के कारण सहमत हुआ। ढाई हजार वर्ष पूर्व कन्फ्यूशियस की अदालत में हुए इस फैसले को आधार बनाकर आगे की न्याय प्रक्रिया चलती तो आज समाज में जो अपराध बढ़ रहे हैं, वे नहीं बढ़ते। धन का बेहूदा प्रदर्शन नहीं होता, धन-दौलत को नाक के साथ जोड़ें या जरूरत के साथ जोड़ें, बहुत गंभीरता से सोचने का विषय है।

संकलन : बेला गर्ग