एम एफ हुसैन को इनसे मिली थी रामयाण की पेंटिंग बनाने की प्रेरणा

बात बीसवीं सदी के 5वें दशक की है। स्थान, हैदराबाद का मोती भवन। दोपहर के भोजन का समय। डॉ. राम मनोहर लोहिया वहां आने वाले थे। समाजवादी कार्यकर्ता बड़े अदब के साथ उनकी प्रतीक्षा में खड़े थे। लोहिया जी का आगमन हुआ। एक लड़का पूरे दृश्य को कलमबंद कर रहा था। काम पूरा कर उसने अपनी चित्रकारी लोहिया जी को दिखाई। ‌‌‌अपने झुंझलाए चेहरे, खड़े बाल, चौकन्नी आंखों वाली स्केच को देखकर वह भाव-विभोर हो गए। उन्होंने लड़के को गले लगा लिया, नाम पूछा और उसे दिल्ली बुलाया।

दिल्ली में दोनों की मुलाकात जामा मस्जिद के पास करीम होटल में हुई। नेहरू जी के एक स्केच पर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए इस लड़के ने कहा कि मॉडर्न आर्ट का मजेदार पहलू यही है कि देखने वाला इसे अपनी मर्जी के अनुसार ढालता और समझता है। यह बात फटॉग्रफी में संभव नहीं है। लड़के की पीठ थपथपाते हुए लोहिया जी ने कहा, ‘टाटा-बिड़ला के ड्राइंग रूम में लटकने वाली तस्वीरों से बाहर निकलो और रामायण पेंट करो क्योंकि आर्ट गैलरी की तस्वीरें लोग पतलून में हाथ डाल कर देखते हैं लेकिन रामायण की तस्वीरों में लोग घुल-मिल जाते हैं।’

लोहिया जी की यह बात लड़के को लग गई। वह वर्षों तक गांव और शहर की रामलीला के पात्रों पर गौर करता रहा। लोहिया जी की मृत्यु के बाद उनकी याद में उस लड़के ने दस वर्षों की मेहनत से मोती भवन को करीब डेढ़ सौ रामायण की पेंटिंग से भर दिया और इसका कोई दाम नहीं लिया। तब वह मकबूल था। आने वाले समय में उसे एम.एफ. हुसेन के नाम से जाना गया। सत्ता के प्रोत्साहन और मान से कला और संस्कृति के क्षेत्र में आज भी दिग्गज हस्तियों को आगे लाया जा सकता है, बशर्ते सत्ता तक उनकी पहुंच कला के बल पर हो न कि जुगाड़ से।– संकलन : हरिप्रसाद राय