ईर्ष्यालु व्यक्ति, किसी को सुखी-संपन्न नहीं देख सकता है – प्रेरक कहानी (Erashaylu Vyakti Kisio Ko Sukhi Sampann Nahi Dekh Sakata Hai)

एक महिला कुबड़ी थी जिसकी वजह से वह झुककर चलती थी। सभी लोग उसका उपहास उड़ाते थे। बच्चे तो जब-तब उसे ‘कुबड़ी-कुबड़ी’ कहकर परेशान करते रहते थे। एक दिन वह कहीं जा रही थी कि सहसा रास्ते में उसकी भेंट नारद जी से हो गई। नारद ने उस महिला पर तरस खाते हुए कहा, ‘आओ बहन! मेरे पास आओ। मैं अपने योगबल से तुम्हारा कूबड़ ठीक कर दूंगा।’ महिला बोली, ‘भगवान! आप अंतर्यामी हैं।आप तो जानते ही है कि लोग मेरा कितना मजाक उड़ाते हैं। मुझे सदैव यह कहकर चिढ़ाते रहते हैं कि, देखो वह कुबड़ी जा रही है। यदि आप मुझ पर मेहरबानी कर ही रहे हैं तो मेरे कूबड़ की फिक्र मत कीजिए। आप बस इतना कर दीजिए कि जो लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं, उन सबके भी कूबड़ निकल आए।’ नारद जी ने उस महिला का उत्तर सुना तो हक्के-बक्के रह गए।

आश्चर्यचकित होकर बोले, ‘बहन, दूसरों के कूबड़ निकल आने से तुम्हें क्या मिलेगा/’ बुढ़िया बोली, ‘मैं उन्हें भी अपनी तरह चलते और दूसरों द्वारा उपहास होते देखूंगी तो मन को शांति मिलेगी।’ नारद जी सोचने लगे यह महिला चाहती तो मेरी कृपा से अपना कूबड़ ठीक करा सकती थी। लेकिन उसने हाथ आए अवसर को दूसरों के नुकसान के रूप में ही भुनाने की कामना की।

ईर्ष्यालु व्यक्ति की प्रकृति यही होती है कि वह दूसरों को सुखी-संपन्न देखकर उनके जैसा उन्नत, संपन्न और सुखी होने की प्रेरणा ग्रहण नहीं करता, बल्कि सुखी लोगों को दुखी करने और नीचे गिराने का प्रयास करता है। बुढ़िया का मनोरथ पूरा करने का उनका कोई इरादा नहीं था। बोले, ‘मैं तो तुम्हारा भला करने की सोच रहा था, दूसरों का बुरा कर पाप का भागी क्यों बनूं’ और अंतर्धान हो गए। अब बुढ़िया अपनी कूबड़ के साथ पहले जैसी ही चाल में चली जा रही थी।