इस भारतवंशी के साहित्य को पढ़कर मार्टिन लूथर किंग लेकर आए थे अमेरिका में क्रांति

संकलन: हरिप्रसाद राय
मार्टिन लूथर किंग जब पांच साल के थे, अपनी बहन के साथ ईसाई बच्चों के लिए चलने वाले ‘संडे स्कूल’ में जाने लगे। एक दिन बाइबल की कहानी सुनाने के बाद उपदेशक ने बच्चों से पूछा, ‘क्या आपमें से कोई चर्च की सेवा के लिए तैयार है?’ मार्टिन की बहन ने हाथ उठाया। यह देख मार्टिन ने भी हाथ उठा दिया। इसके बाद चर्च से उनका गहरा रिश्ता बन गया। वहां उन्हें शिक्षा मिली कि सच्चा ईसाई वही है, जो अपने शत्रुओं से भी प्यार करता है। इसलिए गोरों से घृणा नहीं करनी चाहिए।

सावन में भगवान शिव की पूजा में जरूर शामिल करें यह चीज, जानें पूजन मुहूर्त, मंत्र व कथा

मार्टिन का एक गोरा मित्र था। उनके मित्र के पिता की दुकान उनके घर के बगल ही थी, तो दोनों रोजाना साथ-साथ खेलते। छह वर्ष की उम्र में मार्टिन को पता चला कि दोनों दोस्तों की पढ़ाई एक स्कूल में नहीं हो सकती है। वह बहुत खिन्न हो गये। फिर एक दिन उनके बालसखा ने कहा कि उसके पिता ने काले बच्चों के साथ खेलने के लिए उसे मना कर दिया है। इस घटना का मार्टिन पर बहुत बुरा असर पड़ा। शाम को खाना खाते समय उन्होंने अपने माता-पिता से मन की व्यथा कही।

सावन में महंगे हुए काशी विश्‍वनाथ के दर्शन और पूजा, जानिए क्या हैं नई कीमतें

बच्चे की उदासी देखकर माता-पिता ने भी अपने जीवन के अपमान और भेदभाव की कुछ घटनाओं का जिक्र कर दिया। इसके चलते मार्टिन के मन में गोरों के लिए घृणा आ गई। कॉलेज जाने तक यह सवाल वह खुद से करते रहे कि घृणा करने वाले उन लोगों से प्यार कैसे करें, जिन्होंने उनके बचपन का दोस्त उनसे छीना हो? प्रेम और घृणा के इस अंतर्द्वंद्व से उन्हें तब तक छुटकारा नहीं मिला, जब तक उन्होंने गांधियन साहित्य का अध्ययन नहीं किया। गांधीजी ने उन्हें अहिंसा का वह मार्ग दिखाया, जिस पर चलकर उन्होंने अमेरिका में क्रांति कर डाली, वह भी बड़े प्रेम से।