इस तरह से कस्‍तूरबा बा ने गांधीजी को पढ़ाया था अहिंसा का पाठ

घटना डरबन के समुद्री तट पर स्थित ग्रोव विला की है। दो मंजिला इमारत के सामने लोहे का गेट और बगल से बरामदे तक रास्ता। ऊपर बालकनी, जहां से समुद्री दृश्य मनोहारी लगता था। यूरोपीय शैली में बना यह मकान एक बैरिस्टर की शान के सर्वथा अनुकूल था। इसी विला में रहने के लिए मोहनदास करमचंद गांधी जनवरी 1897 में कस्तूरबा और दोनों बच्चों के साथ पहुंचे। अपनी आधुनिकता के बावजूद यह घर कस्तूरबा को राजकोट और पोरबंदर के घर से अच्छा नहीं लगा।

दरअसल इस मकान से पानी की निकासी का रास्ता नहीं था। सुबह फ्रेश होने के बाद पॉट को बाहर ले जाकर साफ करना पड़ता था। यहां गांधी जी का एक कर्मचारी भी था, जो अपना पॉट साफ नहीं करता था। कस्तूरबा ने गांधी जी से कहा, लेकिन उनका विरोध गांधी जी बुरा लगा। कस्तूरबा के विरोध पर एक रात गांधी जी ने कहा, ‘घर में इस तरह की बेहूदगी मुझे पसंद नहीं है।’ कस्तूरबा ने पलटकर कहा, ‘फिर अपना घर अपने पास रखो और मुझे अकेला छोड़ दो।’ इस प्रतिक्रिया पर गांधीजी क्रोधित हो गए। उन्होंने कस्तूरबा की बांह पकड़ी, उन्हें गेट तक लाए और बोले, ‘निकल जाओ।’

कस्तूरबा को ऐसी हिंसक प्रतिक्रिया की आशा न थी। उन्होंने कहा, ‘रात में घर से बाहर निकालने में आपको शर्म नहीं आती? यहां मेरा कौन है? मेरे माता-पिता यहां कहां हैं? किसके पास जाऊं? पत्नी होने का मतलब यह तो नहीं कि आपकी हर-उलटी सीधी बात बर्दाश्त करूं। तमाशा मत खड़ा करिए और गेट बंद करिए।’ गांधी जी ने गेट बंद किया। कस्तूरबा की अद्वितीय सहन शक्ति और अभय विरोध के सामने गांधी जी की हिंसा हार चुकी थी। गांधी जी को अनुभव हुआ कि हिंसा और शक्ति के बल पर किसी को जीता नहीं जा सकता है। यही वह घटना थी, जिसमें गांधी जी को पहली बार अहिंसा की शक्ति का पता चला।

संकलन : हरिप्रसाद राय