इस तरह रक्षा वैज्ञानिक डॉ. दौलत सिंह कोठारी ने हासिल किया यह मुकाम

रक्षा वैज्ञानिक डॉ. दौलत सिंह कोठारी ने इलाहाबाद विवि से 1926 में बीएससी में प्रथम श्रेणी तथा 1928 में एमएससी में प्रथम श्रेणी के साथ सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। यहां उन्हें देश के महान वैज्ञानिकों डॉ. मेघनाद साहा, डॉ. एनआर धर, डॉ. एसी बनर्जी का सान्निध्य मिला। वह शोध करने लंदन गए तो उन्हे ऑक्सफर्ड विवि में दाखिला मिला, मगर वह कैम्ब्रिज विवि में जाना चाहते थे क्योंकि वहां विज्ञान में बेहतर शोध हो रहा था। उन्होंने इंडिया हाउस में निवेदन किया तो कोई नतीजा नहीं निकला।

संयोग से उन्हें वहां ऑक्सफर्ड में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे उदयपुर निवासी उनके मित्र गुलाम अली बोहरा मिल गए। एक रविवार वह कोठारी को कैम्ब्रिज विवि घुमाने ले गए। वहां उन्होंने विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक लॉर्ड रदरफोर्ड को लाइब्रेरी में अध्ययनरत पाया। कोठारी ने हिचकिचाते हुए उनसे पूछा, ‘सर, प्रो. मेघनाद साहा ने आपको मेरे बारे में लिखा होगा, मैं दौलत सिंह कोठारी…’ इससे पहले कि वाक्य पूरा होता, सर रदरफोर्ड खुशी से उछलकर बोले, ‘हां, मि. कोठारी, मैं इस समय तुम्हारा ही पर्चा पढ़ रहा हूं। यह बहुत रोचक है। क्या तुमने दाखिले की औपचारिकताएं पूरी कर लीं? यदि नहीं तो जल्दी पूरी करो, मेरी सेक्रेटरी तुम्हारी मदद कर देगी।’

इस तरह कोठारी विश्व प्रसिद्ध कैम्ब्रिज विवि की कैवेंडिश प्रयोगशाला में आ गए। यहां उनका ग्यारह शोधकर्ताओं का दल था, जिनमें से 9 को बाद में नोबेल पुरस्कार मिले। कोठारी 1933 में भारत लौटे और इलाहाबाद विवि में डिमॉन्स्ट्रेटर नियुक्त हुए। यहां से देश में ही रहते हुए विज्ञान, रक्षा विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान का सिलसिला शुरू हुआ। वह 1948 से 61 तक रक्षा मंत्री के प्रथम वैज्ञानिक सलाहकार रहे और बाद में रक्षा अनुसंधान एवं विकास सलाहकार समिति के अध्यक्ष बनाए गए। उन्होंने देश में 12 रक्षा प्रयोगशालाओं की स्थापना कराई।

संकलन : रमेश जैन