इस तरह बदली थी सम्राट अशोक की सोच, सबसे कंलकित युद्ध पर हो रहा था गर्व

संकलन: ललित गर्ग
यह बात उस समय की है, जब सम्राट अशोक ने कलिंग विजय कर ली थी। उस युद्ध में लाखों निरपराध व्यक्ति मारे गए थे। लाखों बालक अनाथ हो गए और स्त्रियां विधवा हो गईं। उस दिन मानवता कलंकित हुई थी, पर सम्राट अशोक अपने विजय गर्व में चूर हो रहे थे। विजयोत्सव मनाया जा रहा था। अशोक अपनी माता को इस विजय के अहंकार में फूले-फूले मन से वह बता रहे थे, ‘यह कलिंग नरेश मेरी अधीनता स्वीकार नहीं कर रहा था। मैंने उसे ही नहीं पूरे कलिंग को राख के ढेर में तब्दील कर दिया।’

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सम्राट अशोक सोच रहे थे कि माता उनके इस विजय पर गर्व करेंगी, खुश होंगी। लेकिन सम्राट अशोक की अहंकारपूर्ण बातें सुनकर माता दुखी हो रही थीं। उनकी आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। वह इस युद्ध और उसके परिणाम से अत्यंत दुखी थीं। माता को दुखी देखकर अशोक को विस्मय हुआ। उसने पूछा, ‘माता! आप रो रही हैं? ऐसा क्यों? आपको तो अपने वीर और विजयी पुत्र पर गर्व होना चाहिए। प्रसन्न होना चाहिए कि आपके पुत्र ने कलिंग पर विजय प्राप्त कर लिया है।’

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महारानी ने उत्तर में जो शब्द कहे, वे बहुत मार्मिक और झकझोरने वाले थे। महारानी ने अशोक से कहा, ‘पुत्र! तेरा नाम अशोक है, यानी दुनिया को शोकमुक्त करने वाला, लेकिन तू तो संसार में शोक का ही प्रसार कर रहा है। तनिक विचार कर कि जिन लाखों नारियों के पुत्र और पति मृत्यु को प्राप्त हुए हैं, उनमें यदि एक तू स्वयं भी होता तो तेरी माता को कितनी पीड़ा होती?’ महारानी इससे अधिक कुछ नहीं कह पाईं, लेकिन इतने से शब्दों में करुणा का जो सागर लहरा रहा था, उसमें भारतवर्ष का वह सम्राट उस दिन डूब गया। माता के दर्द और करुणाभरे शब्दों ने सम्राट अशोक की सोच और जीवन की दिशा को ही बदल दिया।