लोग निमाई की शिकायत लेकर शहर के काजी के पास पहुंचे। काजी रिश्ते में निमाई का मामा था मगर धर्म बदलकर मुसलमान बन गया था। लोगों ने काजी से कहा, ‘हम दुकानदार लोग निमाई से तंग आ गए हैं। इसकी वजह से हमारा धंधा ठप होता जा रहा है। यह काली की पूजा नहीं करता। और तो और, यह मुसलमानों को भी कृष्ण भक्त बनाता जा रहा है।’ लोगों की बात सुनकर काजी को बहुत गुस्सा आया। उसने फरमान जारी किया कि अब निमाई और उनके शिष्यों को कीर्तन नहीं करने दिया जाएगा।
निमाई को पता चला तो वह बोले, ‘चलो, काजी के घर के सामने ही कीर्तन करते हैं।’ काजी के घर के सामने कीर्तन शुरू हुआ। कीर्तन में कुछ असामाजिक तत्व भी घुस गए और उन्होंने काजी के घर पर पथराव कर दिया। यह देख निमाई उठे और खुद काजी के घर में चले गए। अंदर काजी डरा बैठा था। उन्हें देख निमाई बोले, ‘डरो मत मामा। मेरे साथ चलो। कन्हैया मेरे साथ हैं।’ और वह काजी को लेकर बाहर आए। कीर्तन फिर से शुरू हुआ। इतना रसभरा कीर्तन देख काजी को निमाई में नारायण दिखने लगे। काजी ने निमाई से क्षमा मांगी और दूसरा फरमान जारी किया कि अब बलि प्रथा नहीं होगी। यह निमाई थे चैतन्य महाप्रभु जिनके भक्ति आंदोलन ने भारतीय समाज को नई चेतना देने का काम किया।– संकलन: अर्चना शर्मा