इस तरह एक भिखारी में मिला राजा को अपना पुत्र फिर…

संकलन: राधा नाचीज
राजा बृजेंद्र बड़े प्रतापी और धार्मिक थे। उनके कोई संतान नहीं थी। उन्हें चिंता लगी रहती थी कि उनके बाद उनके राज्य का क्या होगा? गुरु माधवाचार्य ने उन्हें पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने की सलाह दी। राजा ने यज्ञ तो किया ही, यज्ञ की समाप्ति पर गरीबों और ब्राह्मणों को भरपेट भोजन और यथासंभव दक्षिणा भी दी। याचकों का आशीर्वाद धरती से लेकर आकाश तक में छा गया। तभी आकाशवाणी हुई- ‘राजन! तुम्हारे भाग्य में अपना पुत्र नहीं है। तुम किसी सुपात्र को अपना पुत्र बना लो।’

आकाशवाणी ने राजा बृजेंद्र को चिंता में डाल दिया। उन्हें कोई सुपात्र दिखाई नहीं पड़ रहा था। राजा की कसौटी भी अद्भुत थी। वे मानते थे कि मनुष्य में दूसरे के दुखों को अपना दुख समझने का गुण अवश्य होना चाहिए। दोपहर का समय था। राजा बृजेंद्र खिड़की के पास बैठकर बाहर की ओर देख रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि फटे कपड़े पहने एक युवक पत्तल में कुछ रोटियां रखकर खा रहा है। सहसा एक वृद्ध मनुष्य उसके पास पहुंचा और उससे रोटियां मांगने लगा। उस युवक ने अपनी पत्तल उठाकर उसे दे दी। राजा बृजेंद्र को लगा जिसकी उन्हें तलाश थी, यह वही है। वे उसे आदर सहित अपने महल में ले आए। उसे सुंदर आसन पर बैठने को कहा, परंतु वह धरती पर बैठ गया।

राजा बृजेंद्र उस युवक से बोले, ‘मैं आपको अपना दत्तक पुत्र बनाकर संपूर्ण राज्य के भार से मुक्त होना चाहता हूं।’ वह युवक बोला, ‘मैं आपका दत्तक पुत्र तो बन सकता हूं, लेकिन राज्य का भार ग्रहण नहीं कर सकता। मैं राज्य लेकर क्या करुंगा? त्याग ही तो मोक्ष है।’ राजा बृजेंद्र प्रसन्न होकर बोले, ‘तुम ही मेरे दत्तक पुत्र के योग्य हो। मेरी आंखें खुल गई हैं। त्याग ही सुख है।’ फिर राजा बृजेंद्र ने उसे राज्य सौंप दिया और रानी के साथ भिक्षुक बनकर प्रचार करने लगे।