इस गुफा में रहती हैं शिव के साथ देवी सती, कहलाता है 13वां शक्तिपीठ

माता सती का गला गिरा था यहां पर

इस गुफा में बाबा बर्फानी हिमलिंग के रूप में भक्‍तों को दर्शन देते हैं तो हिमनिर्मित पार्वती पीठ प्राकृतिक रूप से हर साल अपने आप तैयार हो जाता है। मान्‍यता है कि पिता द्वारा भगवान शिव का अपमान होने से नाराज देवी सती ने हवनकुंड में कूदकर आत्‍मदाह किया। उनके अधजले शरीर को हाथों में लेकर व्‍यथित शिव पूरे ब्रह्मांड में घूमते रहे। उस वक्‍त देवी के अंगों में से उनका कंठ यहां गिरा था। इसलिए यहां शक्तिपीठ के रूप में माता की आराधना की जाती है।

इसलिए बना अमरनाथ धाम

पुराणों में बताया गया है कि इस पवित्र गुफा में ही भगवान शिव ने माता पार्वती को जीवन मरण से संबंधित रहस्‍य, कथा के रूप में माता पार्वती को सुनाया था। क्योंकि शिव अजर-अमर थे और पार्वती जीवन-मृत्यु के बंधन में थीं। इसलिए वह हर जन्म में कठोर तप कर शिव को पति रूप में प्राप्त करती थीं।

शिव-पार्वती पुत्र गणेश भी हैं विराजमान

यहां हर साल बननेवाले तीन हिंमलिंगों में से एक को गणपति भगवान के रूप में भी पूजा जाता है। इसलिए कहा जाता है कि भगवान शिव अपने परिवार के साथ यहां विराजमान हैं।

शक्तिपीठ की पूजा विधि

हिमलिंग के रूप में माता भगवती की पूजा भी यहां पूरे विधि विधान के साथ की जाती है। यहां भगवती के अंग और उनके आभूषणों की पूजा की जाती है। मान्‍यता है कि जो भक्‍त यहां से भगवान शिव के साथ-साथ मां भगवती का भी आशीर्वाद लेकर जाते हैं, व‍ह संसार में सारे सुखों को भोगकर अंत में मोक्ष प्राप्‍त करते हैं।

बाबा भैरों की इस रूप में होती है पूजा

इस पवित्र गुफा में बाबा भैरों की पूजा त्रिसंध्‍येश्‍वर भगवान के रूप में होती है। कहते हैं कि बाबा बर्फानी और महामाया शक्तिपीठ के दर्शन के बाद यदि भैरों बाबा के दर्शन नहीं किए तो पूजा का पूर्ण फल प्राप्‍त नहीं होता।