इसलिए सारा काम छोड़कर अखबार का अंतिम प्रूफ जांचते थे श्रीनारायण चतुर्वेदी

संकलन: रेनू सैनी
यह घटना उन दिनों की है जब ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादक पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी किसी समाचारपत्र के संपादक थे। तब आज की तरह समाचार-पत्र कंप्यूटर से नहीं निकलते थे, बल्कि हाथ से उनकी कंपोजिंग की जाती थी। चतुर्वेदी जी प्रेस के पास ही रहते थे। इसलिए रात में भी उनकी मंजूरी के लिए अंतिम प्रूफ आया करते थे। प्रूफ आते ही संपादक अपना सारा काम छोड़कर उन्हें जांचने में लग जाते थे। इस काम में वह अपना खाना-पीना तक भूल जाते थे।

जीवन में करें बदलाव तो इस तरह साक्षात हो सकते हैं ईश्वर के दर्शन

आए दिन यह होता देख उनकी पत्नी गुस्से से आगबबूला हो उठती थीं। एक दिन रात में जब एक जरूरी प्रूफ आया तो उनकी पत्नी झल्लाकर बोलीं, ‘आखिर इस प्रूफ में ऐसा क्या है जो आप इसे तुरंत लेकर बैठ जाते हैं? अगर एकाध गलती रह भी जाए तो क्या फर्क पड़ता है?’ पत्नी की बात पर चतुर्वेदी जी मुस्कुराकर बोले, ‘श्रीमती जी, मैं प्रूफ का महत्व आपकी भाषा में ही समझाता हूं। देखो, तुम चावल बनाते समय एक-एक दाना देखकर कंकड़ चुनती हो। भूल से कभी कंकड़ चावल में रह जाता है तो मुंह में आने पर सारा खाना ही बेस्वाद लगने लगता है। ऐसे ही अगर समाचार-पत्र में एक भी गलती रह जाए तो पूरे समाचार-पत्र का मजा किरकिरा हो जाता है। जिस तरह चावलों को बिना कंकड़-पत्थर के खाने में आनंद आता है, वैसे समाचार-पत्र को भी बिना गलतियों के पढ़ने में आनंद आता है।’

इसलिए मन का है दुख से गहरा नाता, सुख और शांति के लिए आजमाएं यह तरीका

चतुर्वेदी जी की बात पर उनकी पत्नी को अपनी गलती का अहसास हो गया और वह प्रूफ का महत्व समझ गईं। वह चतुर्वेदी जी से बोलीं, ‘आपकी बात मैं अच्छी तरह समझ गई और यह भी समझ गई कि केवल खाना या फिर समाचार-पत्र ही नहीं, बल्कि कोई भी चीज या काम तभी सुहाता है, जब वह बिना गलतियों के हो।’ पत्नी की बात पर चतुर्वेदी जी हंस पड़े और फिर से प्रूफ जांचने में लग गए।