इसलिए संत तुकाराम ने कहा है कभी भी कर्म का प्रभाव अपने ऊपर मत पड़ने दो

संकलन: आर.डी.अग्रवाल ‘प्रेमी’
एक दिन संत तुकाराम के पास एक साधक आया और बोला, ‘आप कहते हैं कि जैसा भी कर्म करो, उसका प्रभाव अपने ऊपर मत पड़ने दो। यह बात मेरी समझ में नहीं आती। कृपया इसे समझाएं।’ संत तुकाराम ने कहा, ‘मैं ज्यादा तो कुछ नहीं जानता हूं। आज के दिन तुम विश्राम करो। कल आना और अपने साथ कटहल, चाकू और एक तेल का कटोरा लेते आना।’ यह सुनकर साधक असमंजस में पड़ गया। उसे समझ नहीं आया कि क्या करे, लेकिन उसने सोचा कि अगर संत तुकाराम ने ऐसा करने को कहा है, तो जरूर कोई खास बात होगी।

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दूसरे दिन वह सभी चीजों के साथ संत तुकाराम के पास पहुंचा। अब संत ने साधक को चाकू से कटहल काटने को कहा। साधक जब कटहल काट रहा था, तब कटहल का दूध निकल रहा था और साधक के हाथ और चाकू उसकी वजह से चिपचिपे हो रहे थे। चिपकने के चलते कटहल भी कट नहीं पा रहा था। तब संत तुकाराम बोले, ‘ऐसा करो, अब अपना हाथ और चाकू पानी से धो लो और फिर दोनों पर तेल लगा कर कटहल काटो।’ साधक ने ऐसा ही किया। इस बार कटहल पूरा कट गया और हाथ और चाकू पर तेल लगा होने के कारण चिपचिपाहट भी जाती रही।

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अब संत तुकाराम ने समझाया, ‘संसार में भी ऐसे ही रहो। परमात्मा की याद रूपी तेल लगाकर कर्म करो, तो कर्म रूपी कटहल कटता चला जाएगा। उसका दूध चिपकेगा नहीं। यानी कर्म में आसक्ति नहीं होगी। बिना आसक्ति के कर्म मनुष्य को बंधन में नहीं डालता। मनुष्य को कर्म करने ही पड़ते हैं। वह कितना भी प्रयास करे, कर्म के प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकता। इसलिए कर्म करो, मगर कर्म या फल से आसक्ति मत रखो।’ अब उस साधक ने अपनी समस्या का समाधान पा लिया था।