इसलिए शाक्य राजकुमार महात्मा बुद्ध के बनना चाहते थे शिष्य

संकलन: हरिप्रसाद राय
जब कपिलवस्तु में भिक्षुओं की संख्या बहुत बढ़ गई तो बाद बुद्ध वहां से भी आगे चल दिए। उनके साथ राहुल और नंद भी हो लिए। वे कौशल से उत्तरी की तरफ एक उद्यान में ठहरे। महानाम, अनिरुद्ध और भद्दीय नामक शाक्य राजकुमार भिक्षु बनना चाहते थे, लेकिन बुद्ध के कपिलवस्तु में रहते हुए वे ऐसा नहीं कर सके। महात्मा बुद्ध के जाते ही वे बेचैन हो गए और उनकी खोज में निकल पड़े। बुद्ध की तलाश में वे शाक्य-कौशल सीमा तक आए। अनजान राही होने के कारण कौशल राज्य की सीमा में रथ से जाना उन्हें अनुचित लगा।

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वे सीमा पर उपालि नामक नाई की दुकान में गए और सीमा पार कराने में उसकी मदद मांगी। जब उपालि उन्हें सीमा पार कराकर और आगे का रास्ता बता कर वापस आने लगा तो राजकुमारों ने आभूषणों और रत्न जड़ित वस्त्रों का एक गट्ठर उसे देकर कहा, ‘हम लोग महात्मा बुद्ध के शिष्य बनना चाहते हैं इसलिए इनकी कोई आवश्यकता नही हैं। इन्हें बेचकर तुम आराम का जीवन गुजारो।’ घर आकर उपालि ने हीरे-जवाहरात की गठरी खोली तो बेहाल हो गया। सोचने लगा कि राजकुमार जब अपनी धन संपदा त्याग कर भिक्षु बनना चाहते हैं तो मैं क्यों नहीं?

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अब उपालि ने आभूषणों की पोटली एक पेड़ पर टांगी और सीमा पार कर राजकुमारों के पास पहुंच गया। राजकुमारों के अनुरोध पर बुद्ध ने उपालि को पहले भिक्षु बनाया। आगे चलकर यही उपालि महात्मा बुद्ध का बड़ा शिष्य बना। उसने विनयपिटक नामक पुस्तक की रचना पालि भाषा में की, जो बुद्ध की भाषा थी। बुद्ध के निधन के बाद उनकी शिक्षाओं को एकत्रित करने के लिए तीन महीने तक जो पहली महापरिषद चली थी, उसमें उपालि से विनय और आचरण संबंधित प्रश्न रोज पूछे जाते थे। सच कि है कि सज्जनों की संगति से व्यक्ति का केवल उपकार ही होता है।