इसलिए व्यक्ति ने गांधीजी से छुपाकर मंगवाई थी मसालेदार चीजें

संकलन: बेला गर्ग
उन दिनों की बात है जब गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में थे। कुछ युवक उनके जीवन से प्रेरित होकर फिनिक्स आश्रम पहुंचे और आश्रम के कानून और नियमों पर चलने का वचन देते हुए वहां रहने का निवेदन किया। इजाजत मिलने के बाद वे आश्रम में रहने लगे। बापू को प्रभावित करने के लिए उन्होंने बिना नमक का भोजन करने की प्रतिज्ञा की। कुछ दिनों तक वे नमक न खाने की अपनी प्रतिज्ञा पर कायम रहे लेकिन शीघ्र ही उस बेस्वाद भोजन से ऊबने लगे।

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जब बिना नमक के खाना मुश्किल हो गया तब एक दिन उन युवकों ने मसालेदार चटपटी चीजें मंगवाईं और चुपचाप खा लिया। उन युवकों में से एक के लिए यह चोरी छिपाना संभव नहीं हुआ। उसने जाकर बापू को सब कुछ बतला दिया। बापू उस समय कुछ नहीं बोले लेकिन शाम की प्रार्थना के उपरांत उन्होंने युवकों को अपने पास बुलाया और मसालेदार खाना खाने के बारे में पूछा। युवकों ने इस प्रकार का खाना खाने से साफ इनकार कर दिया। उलटे उन्होंने भेद खोलने वाले युवक को ही झूठा ठहरा दिया।

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बापू सत्य को अपने जीवन का सबसे बड़ा आधार मानते थे। आश्रम में रहने आए इन युवकों का व्यवहार उनके लिए बेहद तकलीफदेह था। मगर वे सत्य के साथ अहिंसा को भी अपने व्यवहार की कसौटी मानते थे, इसलिए उन्होंने बगैर उद्वेलित हुए शांत भाव से उन युवकों से कहा, ‘तुमने मुझसे सचाई छिपाई, यह तुम्हारी नहीं, मेरी कमी है। ऐसा लगता है कि अब तक मैंने सत्य का गुण ठीक से प्राप्त नहीं किया है। इसीलिए सत्य मुझसे दूर भागता है। अपने हृदय को और शुद्ध बनाने के लिए मुझे ही प्रायश्चित करना पड़ेगा।’ गांधीजी के इन शब्दों का उन युवकों पर गहरा प्रभाव पड़ा। सबने तत्काल अपना अपराध कबूल कर लिया और बापू से क्षमा मांगते हुए संकल्प लिया कि अब कभी सत्य की राह नहीं छोड़ेंगे।