इसलिए फांसी से पहले भगत सिंह ने जयदेव कपूर को दिए थे अपनी घड़ी और जूते

जयदेव कपूर छात्र जीवन से ही क्रांतिकारियों के संगठन ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन’ में शामिल हो गए थे। कुछ ही समय में भगत सिंह से उनकी गहरी दोस्ती हो गई। 8 अप्रैल 1929 का दिन ‘असेंबली हॉल’ में बम फेंकने के लिए निश्चित कर लिया गया था। उस दिन दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ पेश किया जाने वाला था। असेंबली से पारित होने के बाद यह बिल कानून बन जाता। बिल का मकसद अंग्रेजी सरकार के खिलाफ उठ रही आवाजों को दबाना था।

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एक दिन पहले भगत सिंह जयदेव कपूर के पास आए और बोले, ‘कल असेंबली में बम फटने के बाद इतिहास बदल जाएगा। अंग्रेजों को उलटे पांव भागना होगा। हम जैसे क्रांतिकारी इस पावन धरती पर जन्म लेते रहेंगे। आने वाली पीढ़ियों के पास हमारी कुछ निशानियां रह जानी चाहिए।’ जयदेव उनकी बातों का कुछ-कुछ मतलब समझ गए थे। वह बोले, ‘अच्छा तो कल की विजय से पहले आप अपनी कुछ निशानी देने आए हैं।’ भगत सिंह ने मुस्कराकर हामी भरी। इसके बाद उन्होंने अपने जूते और एक पॉकेट घड़ी उन्हें देते हुए कहा, ‘यह घड़ी बड़ी अनमोल है। महान क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल से भेंट में मिली थी। इसे तुम रखो।’

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कुछ देर के लिए चुप्पी छा गई। फिर भगत सिंह बोले, ‘जयदेव मुझे वचन दो कि तुम आजादी की इस मशाल को जला कर रखोगे, इसे कभी बुझने न दोगे। जब तक यह देश स्वतंत्र नहीं हो जाता आजादी की मशाल को जलते रहना है।’ जयदेव कपूर से वचन लेकर भगत सिंह वहां से चले गए। दूसरे दिन भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली हॉल में बम फेंका, उन्हें पकड़कर जेल में डाल दिया गया और फांसी की सजा सुनाई गई। जयदेव कपूर ने भगत सिंह की दी घड़ी और जूते को सहेज कर रखा और आजादी की मशाल को लगातार जलाए रखने का संकल्प लिया।– संकलन: रेनू सैनी