इन 4 स्थानों पर ही कुंभ क्यों, जानें कुंभ का अद्भुत इतिहास

साल 2019 का आगमन भारतीय इतिहास में कोई नए वैशिष्ट्य जोड़ने के लिए हुआ है। इनमें से सर्वप्रमुख है, प्रयागराज में गंगा, यमुना व सरस्वती के पावन त्रिवेणी संगम तट पर मकर संक्रांति से महाशिवरात्रि तक चलने वाला कुंभ महापर्व का आयोजन जो 14 जनवरी मकर संक्रांति से आरंभ हो रहा है। आध्यात्मिक चेतना से जुड़ा यह महापर्व अपने देश की सामाजिक, सांस्कृतिक अवधारणाओं का मूर्त रूप है। यह प्राचीनतम लोकपर्व राष्ट्र के समन्वयात्मक सांस्कृतिक जीवन का व्यावहारिक आधार है। इस पर्व से राष्ट्रीयता का भाव सुदृढ़ होता है। अमृतपर्व कुंभ ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के विचारपक्ष के अग्रसर करता हुआ आत्मवत् सर्वभूतेषु में तदाकार हो जाता है। चिरपुरातन से ही इसकी गौरव-गरिमा कायम है।

सागर मंथन से निकला कुंभ का आयोजन
श्रीमद्भागवत पुराण के सागर मंथन प्रसंग में कुंभ का उल्लेख मिलता है। इस विवरण के अनुसार, सागर के चौदह रत्न निकले थे। ये कालकूट विष, कामधेनु, कल्पवृक्ष, कौस्तुभमणि, उच्चैश्रवा अश्व, ऐरावत गज, रंभा अप्सरा, सुरा, लक्ष्मी, चंद्रमा, शार्गंधनुष, भगवान धन्वन्तरि, पांचजन्य शंख एवं अमृत कुंभ। जनकल्याणार्थ भगवान सदाशिव कालकूट स्वयं पी गए थे। विश्वमोहनी बने भगवान विष्णु ने अमृत देवताओं को पिला दिया। हालांकि यहां पुराणों में मतांतर मिलता है।

कुंभ के लिए मिले पृथ्वी को ये 4 स्थान
वामन पुराण के विवरण के अनुसार, आचार्य बृहस्पति का संकेत पाकर इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कुंभ लेकर भाग गया। मोहान्ध दैत्यगणों ने उसका पीछा किया। फिर लगातार बारह वर्षों तक दैत्यों और देवताओं के बीच घनघोर युद्ध चला। युद्ध के समय जयंत के हाथों पकड़े अमृतकुंभ से त्रिलोक के बारह स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं। इनमें से आठ स्थान देवलोक और चार स्थान पृथ्वीलोक में अवस्थित हैं। पृथ्वी के ये चार स्थान हैं। हरिद्वार, प्रयाग उज्जैन और नासिक हैं।

स्वर्ग से लाए थे अमृतकुंभ
पुराणों में वर्णित एक अन्य कथा के अनुसार, पक्षीराज गरुड़ अपनी माता विनिता को सर्पों की माता कद्रू की कैद से छुड़ाने के लिए शर्त के अनुसार, स्वर्ग से अमृतकुंभ लाए थे। उन्होंने सर्पों को अमृतकुंभ सौंपकर अपनी माता को मुक्त कराया, परंतु सर्प इसे पी पाएं इसके पहले ही इंद्र इसे वापस ले गए। इसी समय कुंभ से अमृत की चार बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिर गयीं।

इन वेदों में मिलता है कुंभ का उल्लेख
कालंतर में इन्हीं चार स्थानों को कुंभ पर्व के आयोजन के लिए पवित्र माना गया। वायु पुराण और नारदीय पुराण में सरस्वती नदी के तट पर स्थित कुंभ और श्रीकुंभ तीर्थ का वर्णन किया गया। वेदों की कई ऋचाओं में कुंभ, घट एवं कलश के संदर्भ में अनेकों आख्यान मिलते हैं। ऋग्वेद और अथर्ववेद में घृत और मधुपूरित कुंभ का उल्लेख मिलता है। कालिदास ने ‘कांचन कुंभ तीर्थ’ कहकर कुंभपर्व की प्राचीनता एवं महत्ता प्रतिपादित की है।

सम्राट ने दिया था सर्वस्व दान
इतिहास विशेषज्ञों ने कुंभ पर्व की प्राचीनता अनेकों स्थानों पर प्रमाणित की है। चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरण के अनुसार, सम्राट हर्षवर्धन 644 ई. के माघ मास में प्रयागराज में हुए पंचवर्षीय धर्म महासभा में भाग लिया था। इतिहासकारों का मानना है कि यही अर्द्धकुंभ का अवसर था, जिसमें सम्राट हर्षवर्धन ने अपना सर्वस्व दान कर दिया। अनेक सांस्कृतिक विद्वानों के अनुसार, 9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने हिंदू संस्कृति की नींव को सुदृढ़ करने और लोक-कल्याण की दृष्टि से कुंभ का प्रचलन प्रारंभ किया था।

4 मठों की स्थापना और कुंभ का आयोजन
भगवान शंकराचार्य पुरी, द्वारका, शृंगेरी एवं ज्योतिषपीठ के रूप में चार मठों की स्थापना करने के पश्चात उनके संचालन एवं परिचालन हेतु अपने उत्तराधिकारियों को नियुक्त किया। साथ ही उन्होंने उन सभी को निर्देश दिया कि एक निश्चित अवधि के उपरांत वह आपस में मिलने तथा विचार-विमर्श के लिए एकत्रित हों। अतः कई इतिहासवेत्ताओं का कहना है कि इस आवश्यकता के अनुरूप कुंभ पर्व प्रासंगिक हुआ तथा विचार-विनिमय का माध्यम बना।

इतिहास में कुंभ मेला
लिपिबद्ध प्रमाणों के अनुसार, कुंभ पर्व इतिहास के मध्यकाल में अपने पूर्ण विकसित रूप में था। इतिहासकार जदुनाथ सरकार के अनुसार सन् 1234 ई. में नागा संन्यासियों ने जो निर्णायक विजय प्राप्त की थी, वह कुंभ के अवसर पर थी। 17वीं शताब्दी के फारसी के धार्मिक ग्रन्थ ‘द बिस्तान ए मुजाहिब’ भी 1640 ई. में हुए एक भीषण युद्ध का वर्णन मिलता है- जो कुंभ के अवसर पर ही हुआ था।

चैतन्य महाप्रभु हुए थे उपस्थित
प्रयाग में कुंभ महापर्व का उल्लेख चैतन्य महाप्रभु के जीवनवृत्त से ज्ञात होता है। इतिहासकारों के अनुसार 1514 ई. में चैतन्य महाप्रभु स्वयं प्रयाग के कुंभ मेले में उपस्थिति हुए थे। 14वीं शताब्दी के सरस्वती गंगाधर की मराठी पुस्तक गुरुचरित्र में नासिक में आयोजित होने वाले कुंभ मेले का विस्तृत विवरण मिलता है। नासिक से ही प्राप्त एक ताम्रपत्र में नासिक में आयोजित होने वाले कुंभ महापर्व का विवरण प्राप्त होता है।- डा. प्रणव पण्डया/शांतिकुंज, हरिद्वार