इन सिंगल मदर्स ने वो कारनामा कर दिखाया, दुनिया करती है प्रणाम

इन सिंगल मदर्स को दुनिया करती है नमन

10 मई को दुनिया इस वर्ष मदर्स डे मना रही है, यह माताओं को सम्मान देने और उनके लिए खास दिन बनाने का एक छोटा सा प्रयास है। असल में तो हर दिन ऐसा है जब मां को सम्मान मिलना चाहिए। इसकी वजह यह है कि सृष्टि का आधार मां है। मां के रूप में ब्रह्म स्वयं पृथ्वी पर रहता हैऔर सृष्टि रूपी अपनी संतान का पालन पोषण करता है। यही वजह है कि सृष्टि में सभी का ऋण चुकाया जा सकता है मां के ऋण से कोई जीव मुक्त नहीं हो सकता। इतिहास के पन्नों में कई ऐसी माताओं का नाम आता है जिन्होंने अपने अकेले दम पर संतान को इतना तेजस्वी बना दिया कि दुनिया उनकी संतान और माताओं का नाम सूर्य चंद्रमा के रहने तक याद रखेगी।

माता सीता…

धरती की कोख से उत्पन्न हुई मां सीता धरती के समान ही गंभीर और सहनशील है। इन्होंने 14 साल बनवास में बिताया। रावण ने इनका धोखे से हरण कर लिया और रावण के बंधन में रहने के बावजूद इन्होंने अपनी मर्यादा का पालन किया फिर भी समाज ने इनके ऊपर उंगली उठाई। राजधर्म का पालन करने के लिए भगवान राम को ना चाहते हुए भी देवी सीता का त्याग करना पड़ा वह भी उस अवस्था में जब वह गर्भवती थीं। लक्ष्मणजी को भगवान राम के आदेश पर देवी सीता को बाल्मीकि ऋषि के आश्रम में जाकर छोड़ना पड़ा। यहीं देवी सीता ने जुड़वा पुत्रों को जन्म दिया। ऋषि आश्रम में रहकर देवी सीता ने अकेले ही अपने पुत्रों का पालन-पोषण किया। देवी सीता के जुड़वा पुत्र लव कुश ने बाल्यावस्था में लक्ष्मण, भरत सहित अयोध्या की चतुरंगिनी सेना को पराजित कर दिया था।

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देवी शकुंतला

अप्सरा मेनका और ऋषि विश्वामित्र की पुत्री शकुंतला भी एक सिंगल मदर थीं। दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण इनके पति दुष्यंत इन्हें भूल चुके थे। इन्होंने अपने पति को प्रेमविवाह की घटना याद दिलाने की बहुत कोशिश की लेकिन उन्हें कुछ याद नहीं आया। गर्भावस्था में इन्होंने एक ऋषि के आश्रम में समय बिताया और वहीं पुत्र भरत को जन्म दिया। भरत इतना तेजस्वी था कि उसे एक दिन वन में देखकर दुष्यंत आश्चर्य में पड़ गए और उनके साथ ऋषि आश्रम में आ गए। दूसरी तरह अब तक दुष्यंत को प्रेमविवाह की निशानी अंगूठी मिल जाने से सब कुछ याद आ चुका था। आश्रम में दुष्यंत को पता चला कि बालक उन्हीं का पुत्र है। यही बालक आगे चलकर भारत का पहला चक्रवर्ती सम्राट बना और आर्यावर्त का नाम भारत हुआ।

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मां जबाला के पुत्र सत्यकाम

छंदोग्योपनिषद में एक और प्रसंग मिलता है जबाल सत्यकाम ऋषि का। उनकी मां जबाला सिंगल मदर थीं। उपनिषद में कथा है कि सत्यकाम ने जब माता से पूछा कि उनका गोत्र क्या है तो माता ने कहा कि युवावस्था में वह कई घरों में सेविका का काम करती थीं। उन्हें पता नहीं कि उनके पिता कौन हैं। माता के संघर्ष को अपने नाम में जोड़कर सत्यकाम ने ऋषि गौतम को बताया कि उनका नाम जबाल सत्यकाम है, और शिक्षा पाने आए हैं। इन्होंने ब्रह्मतत्व का ज्ञान प्राप्त किया।

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कयाधु ने दिए पुत्र को ऐसे संस्कार, संसार करता है जयजयकार

भगवान विष्णु के परमभक्त प्रह्लाद को इतिहास में अमर बनाने का काम उनकी माता कयाधु ने ही किया था। जब कयाधु गर्भवती थीं उसी दौरान उनके पति हिरण्यकश्यप तपस्या करने चले गए थे। नारद मुनि ने गर्भ में ही कयाधु के पुत्र का वध कर देने का प्रयास किया लेकिन नारद मुनि ने उन्हें बचा लिया। कयाधु ने नारद मुनि के आश्रम में रहकर प्रह्लाद को जन्म दिया और यहीं उन्हें भगवान विष्णु की भक्ति का संस्कार दिया। इसी संस्कार का परिणाम था कि प्रह्लाद यातना सहकर भी हरि भक्ति में लीन था। इतिहास में असुरों के धर्मात्मा राजा के रूप में इनका नाम लिया जाता है।

मां जीजाबाई….

ऐत‍िहासिक कथाओं के अनुसार वीर शिवाजी की मां जीजाबाई ने उनका लालन-पालन अकेले ही किया था। उन्‍हें बचपन से ही तलवारबाजी, घोड़े दौड़ाना, ढाल, रणनीतिक चतुराई आदि सिखाई। इन सबसे बढ़कर मां जीजाबाई ने उनमें हिंदू राष्ट्र की स्थापना का बीज बोया। जिसे श‍िवाजी महाराज ने साकार भी किया। यही कारण है कि जीजाबाई को राष्ट्रमाता का दर्जा दिया गया।