बड़े क्रांतिकारियों को संदेश दना और उनकी हर प्रकार से मदद करना उसका मुख्य कार्य था। सिर पर सफेद टोपी, धोती-कुर्ता पहने चौथमल शीघ्र ही युवा क्रांतिकारियों का नेता बन गया। अब वह फिरंगी पुलिस की नजरों में खटकने लगा। एक दिन चौथमल ने पास के ही गांव माहिदपुर में एक सभा करके युवाओं से आजादी के आंदोलन में कूद पड़ने का आह्वान किया। इस काम में विनायक राव व्यास उनका मुख्य साथी था। चौथमल के आह्वान पर उ इलाके के युवा जोश से भर उठे जिसने ब्रिटिश पुलिस की नींद हराम कर दी।
पुलिस ने मौका देखकर 20 अगस्त 1942 को चौथमल को पकड़ लिया। पहले तो उसे थाने ले जाकर यातनाएं दीं, फिर इंदौर की जेल में बंद कर दिया। वहां उसे तरह-तरह की प्रताड़नाएं दी गईं। फिर भी चौथमल टस से मस नहीं हुआ। जेल में दर्द से कराहते हुए भी वह आजादी-आजादी बुदबुदाता रहा। आखिर 22 जुलाई 1943 को इंदौर जेल में ही पुलिस की यातनाओं के कारण आजादी का यह दीवाना 17 वर्ष की उम्र में ही भारत माता की जय बोलते-बोलते शहीद हो गया। उसकी शव यात्रा में अनेक कांग्रेसी नेताओं सहित हजारों स्त्री-पुरुषों ने आंसू बहाते हुए भाग लिया। उसकी याद में इंदौर में शहीद चौथमल उद्यान और जन्मस्थली गांव कायथा में शासकीय आयुर्वेदिक औषधालय बनाया गया है।– संकलन : रमेश जैन