आचार्य विनोबा भावे ने आखिर क्‍यों महात्‍मा गांधी का यह पत्र फाड़ दिया

आचार्य विनोबा भावे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को बहुत सम्मान देते थे। उन्हें आदर्श मानते थे। अक्सर अपने प्रवचनों में गांधीजी के जीवन की विशेषताओं की चर्चा किया करते थे। गांधीजी से जुड़ी चीजों को भी वह बहुत संभाल कर रखते थे। उनके एक-एक पत्र को वह अपने संग्रह में रखते थे। इन्हें अक्सर संग्रह से निकालकर देखते थे। एक दिन बापू के यहां से प्राप्त पत्र के संग्रह को देखते हुए वह एक पत्र पढ़ने लगे। पत्र को पढ़ते-पढ़ते ही उन्होंने फाड़कर फेंक दिया। यह देख वहां बैठे आश्रमवासियों को बड़ा आश्चर्य हुआ। विनोबाजी ने ऐसा क्यों किया, जानने की जिज्ञासा सभी में थी, लेकिन साहस करके कोई उनसे पूछ नहीं पा रहा था।

एक आश्रमवासी ने विनोबाजी से पूछ ही लिया ‘आचार्य जी! आपने बापू का पत्र क्यों फाड़ दिया? उसमें आखिर ऐसा क्या लिखा था?’ ‘झूठ, बिल्कुल झूठ लिखा था गांधीजी ने।’ विनोबाजी ने उत्तर दिया। ‘पर, आप तो कहते हैं कि गांधीजी कभी झूठ नहीं बोलते। उनके जीवन में झूठ का कोई स्थान ही नहीं है। कृपया सच-सच बताइए, पत्र में क्या लिखा था?’ उस सज्जन के बार-बार आग्रह करने पर विनोबाजी ने कहा, बताता हूं।

विनोबाजी ने कहा, ‘पत्र में लिखा था कि मैं दुनिया का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हूं।’ इसके बाद उन्होंने अपनी बात को अधिक स्पष्ट करते हुए कहा, ‘अरे भाई! दुनिया में मुझसे ज्यादा गुणी बहुत लोग हैं, फिर मैं कैसे सर्वश्रेष्ठ हो सकता हूं?’ ‘फिर भी आपको पत्र नहीं फाड़ना चाहिए था।’ आश्रमवासियों ने अपनी बात रखी। विनोबा ने बड़े शांत भाव से कहा, ‘देखो, अगर मेरे पास वह पत्र रहता तो मुझमें अहंकार पैदा हो सकता था। अहंकार व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास की राह में हमेशा बाधा खड़ी करता है। अहंकार से अनेक तरह की विसंगतियां आ जाती हैं। इसलिए उस पत्र को फाड़ना पड़ा।’ विनोबाजी का यह उत्तर सुन सभी आश्रमवासी हतप्रभ हो गए।

संकन : ललित गर्ग