अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन ने एक बार कुछ मेहमानों को दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया। भोजन के तत्काल बाद उन्हें सैनिक कमांडरों की बैठक में भाग लेने जाना था। उनके सहायक जानते थे कि वॉशिंगटन समय के पाबंद हैं। मेहमानों के आने के समय भोजन लगाने का प्रबंध कर दिया गया। भोजन लगाने की सूचना सहायक ने वॉशिंगटन को दे दी। लेकिन निश्चित समय तक मेहमान नहीं आए। वॉशिंगटन भोजन कक्ष में आए और सहायक से बोले सभी प्लेटें उठा लो, हम अकेले ही भोजन करेंगे। उन्होंने मेहमानों के आने की प्रतीक्षा किए बगैर भोजन शुरू कर दिया। जब वह आधा भोजन कर चुके तब मेहमान पहुंचे और उनके लिए भी प्लेटें लगाई गईं। वॉशिंगटन ने अपना भोजन समाप्त किया और मेहमानों के भोजन करने के दौरान ही उनसे विदा लेकर सैनिक कमांडरों की बैठक में भाग लेने चले गए।
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बैठक में विचार-विमर्श के दौरान ही खबर मिली कि अमेरिका के एक हिस्से में भयंकर विद्रोह हो गया है। राष्ट्रपति ने तुरंत ही हालात संभालने के लिए आवश्यक आदेश जारी किए। समय पर उचित आदेश मिलने के कारण तुरंत कार्रवाई की गई जिससे विद्रोह शांत हो गया। और बहुत बड़े जन-धन की हानि से बचा जा सका। यदि राष्ट्रपति कमांडरों की बैठक में समय पर न पहुंच पाते तो ऐसा संभव नहीं था। इस बात का पता चलने पर मेहमानों को भी अफसोस हुआ।
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उन्होंने अनुभव किया कि प्रत्येक कार्य को निश्चित समय पर करने से भयंकर हानियों को रोका जा सकता है। यह सोचकर मेहमान फिर राष्ट्रपति से मिलने आए और उस दिन की भूल के लिए माफी मांगी। जॉर्ज वॉशिंगटन बोले- इसमें माफी की कोई बात नहीं है, पर जो व्यक्ति परिवार, समाज और राष्ट्र की भलाई चाहता है उसे समय का पाबंद होना ही चाहिए। – संकलन: रमेश जैन