अनादि देवी अम्बिके तुम्हे सतत प्रणाम है
अनादि देवी अम्बिके तुम्हे सतत प्रणाम हैतुम्ही समस्त सृष्टि की अनादि आदि मूल हो
अनंत हो अजेय हो अछोर हो अकूल हो
तुम्ही पुरुषमयी प्रकृति तुम्ही में सृष्टि लीन है
ममत्व मातृशक्ति में सभी नियम अधीन है
कभी स्वरूप रौद्र है कभी ललित ललाम है
अनादि देवी अम्बिके तुम्हे सतत प्रणाम हैतुम्ही समस्त सृष्टि की अनादि आदि मूल हो
अनंत हो अजेय हो अछोर हो अकूल हो
तुम्ही पुरुषमयी प्रकृति तुम्ही में सृष्टि लीन है
ममत्व मातृशक्ति में सभी नियम अधीन है
कभी स्वरूप रौद्र है कभी ललित ललाम है
अनादि देवी अम्बिके तुम्हे सतत प्रणाम है
अनादि देवी अम्बिके तुम्हे सतत प्रणाम है
अनंत कोख से तेरी सृजन अनंत हो रहा
तुम्हीं में आदि हो रहा तुम्ही में अंत हो रहा
अलख निरंजना तुम्ही, तुम्ही अदृश्य सर्जना
पुरुष अनादि में बसी, तुम्ही अनंत प्रेरणा
कृपावृतांत का तेरा, कहीं नहीं विराम है।
अनादि देवी अम्बिके तुम्हे सतत प्रणाम है
अनादि देवी अम्बिके तुम्हे सतत प्रणाम है
अनादि देवी अम्बिके तुम्हे सतत प्रणाम है
स्वर- मालिनी अवस्थी
धुन- स्वर्गीय उस्ताद राहत अली खां
रचना – देव नारायण सिंह राकेश
संगीत संयोजन -सचिन कुमार
मिक्सिंग- सागर