अधिक हर्ष का बाद अधिक दुख

अत्याचारी राजसत्ता जब अपनी शक्ति बढ़ाती हुई अत्याचार की मात्रा बढ़ाती जाती है, तब उसकी गति को रोकना अनिवार्य हो जाता है। ऐसी अवस्था में छल, बल और कौशल से काम लिए बिना काम नहीं चलता।
हिंदू पंच

अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है।
जयशंकर प्रसाद

अनाचार और अत्याचार को चुपचाप सिर झुका कर वे ही सहन कर सकते हैं, जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव हो।
काका कालेलकर

अत्याचार का जन्म ही दुर्बलता से होता है।
रांगेय राघव