होली एक सामूहिक यज्ञ, स्वास्थ्य लाभ के लिए ऐसे मनाएं उत्सव

होली एक सामूहिक यज्ञ है। इस दिन सभी उपासक मिलकर गांव वालों को साथ लेकर नगर से बाहर समिधा व कंडे संग्रह करके थोड़ा-थोड़ा हवन सामग्री इकट्ठा करके हवन (होली) करें। इसके लिए पहले जो शमी वृक्ष (छोंकरा या खेजड़ी)की लकड़ी गाड़ने की प्रथा है, उसे एक अच्छा लम्बा, चौड़ा और गहरा हवन कुण्ड खोदकर उसके बीच में खड़ा

किया जाना चाहिए। इसके बाद नित्य प्रति या सुविधानुसार सब लोग मिलकर गांव के बाहर जाएं और वहां से हवन की समिधाएं (पलास, आम, पीपल, बड़, गूलर, खैर आदि की लकड़ी) तथा कंडे इकट्ठे करें और उन्हें किसी सुरक्षित स्थान पर जमा करते रहें। यदि सब साथ न जा सकें तो अपनी सुविधानुसार थोड़े-थोड़े लोग भिन्न-भिन्न समय भी जा सकते हैं। पर होली से पूर्व एक महीने के भीतर चार बार सब को अवश्य सम्मिलित होकर सामूहिक रूप से समिधाएं इकट्ठी करने के लिए जाना चाहिए।

सामूहिक रूप से जाने वालों की वेषभूषा एक-सी हो। उनके हाथों में कलावा बांधकर तिलक करना चाहिए और साथ में शंख, घंटा, घड़ियाल और कीर्तन के साधन हों। गांव के बाहर जाकर सब गायत्री मंत्र का जप करते हुए हवन के उपयुक्त औषधियों और समिधाओं का संग्रह आरंभ करें। जंगल को जाते समय शंख, घंटा, घड़ियाल बजाते और कीर्तन करते हुए जाना चाहिए। समिधा लाकर गांव में घर-घर जाकर होलिका यज्ञ के लिए हविषान्न, औषधियां, मेवा, गोला, घृत, शक्कर आदि सामग्री में से कोई एक वस्तु लाने की प्रार्थना करनी चाहिए।

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होली की निश्चित तिथि व समय पर यज्ञ स्थल पहुंचकर कुंड व होली का पूजन आचार्य द्वारा विधिवत् करना चाहिए। हवन होने के पश्चात् अपने साथ लाए नारियल, गोला, सुपाड़ी आदि से पूर्णाहुति करनी चाहिए तथा कीर्तन करते हुए चार परिक्रमा लगानी चाहिए। इस हवन की उठती हुई ज्वालाओं में अपने-अपने खेत से लाए हुए पके अन्न की बालों को सेंकना चाहिए और सब को प्रसाद रूप में वितरण करके खाना चाहिए, जो अकेला खाता है सो पाप करता है। इस भुने अन्न को खाने से आँतों को लाभ होता है। इसके पश्चात् होलिका की भस्म को मस्तक पर लगाकर भक्त प्रह्लाद की तरह ईश्वर की उपासना में दृढ़ रहने का व्रत लेना चाहिए। दूसरे दिन चैत्र मास आरंभ हो जाता है और होलिका दाह की कल्पना करके प्रतिपदा को स्नान का त्योहार मानते हैं। इसके लिए टेसू के फूल रात को ही भिगोकर रंग तैयार कर लेना चाहिए। सबको अपने साथ ही यही रंग लेकर एक स्थान पर इकट्ठा हो प्रेमपूर्वक होली खेलना चाहिए। मस्तक पर थोड़ा सा गुलाल या चन्दन, रोली आदि लगा देना चाहिए।

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इस प्रकार होलिकोत्सव मनाने में समाज में सामूहिकता की भावना की वृद्धि होगी। इस अवसर पर विधि पूर्वक यज्ञ करने से इस मौसम की बीमारियों से रक्षा होती है, स्वास्थ्य तथा सद्भावना की वृद्धि होती है और फसल में पौष्टिक तत्व बढ़ता है।-पंडित श्री राम शर्मा आचार्य