महात्मा बुद्ध सांध्यकालीन प्रवचन देकर हमेशा की तरह तीन बार बोले, ‘अब अपना-अपना कार्य संपन्न करें।’ इसके बाद उठ कर अपने विश्राम स्थल की और बढ़ गए। आनंद भी उनके पीछे-पीछे वहां पहुंच गया। आज आनंद ने आख़िर बुद्ध से पूछ ही लिया कि आप एक ही बात को तीन बार क्यों दोहराते हैं?
बुद्ध की आदत थी की हर बात वे अपने शिष्यों को तीन बार समझा देते थे। अब आनंद को ये शायद फालतू की बात ही लगती होगी कि अब रोज-रोज ये क्या तीन बार दोहराना कि जाओ अब अपना अपना काम करो। अरे भाई स्वाभाविक और समझी हुई बात है की, बुद्ध के भिक्षु हो तो, सांध्य कर्म और सभा के बाद सब ईश्वर चिंतन और ध्यान करो। अब ये भी कोई रोज रोज समझाने की बात है भला?
अब बुद्ध ने कहा, ‘आनंद तुम कहते तो ठीक हो कि भिक्षु को रोज-रोज क्या समझाना। पर तुमने शायद ध्यान नही दिया की यहां धर्म सभा में आस-पास की बस्तियों के भी काफी सारे लोग आते हैं। और वो शायद पहली बार भी आए हुए हो सकते हैं। सो उनकी सहूलियत के लिए भी ये जरुरी हो जाता है।’ पर आनंद के हाव-भाव से महात्मा बुद्ध को ऐसा लगा कि वो इस बात से शायद सहमत नही है।
अब बुद्ध बोले- आनंद अब तुम एक काम करो। आज की ही सभा में जितने लोग बैठे थे, उनमे एक वेश्या और एक चोर भी प्रवचन सुनने आए थे। और संन्यासी तो खैर अनेको थे ही। अब तुम एक काम करना की सुबह इन तीनों ( संन्यासी, वेश्या और चोर ) से जाकर पूछना की कल रात्रि धर्म-सभा में बुद्ध ने जो आखिरी वचन कहे, उनसे वो क्या समझे? अब आनंद के आश्चर्य का कोई ठिकाना नही रहा। उसको ख़ुद नही मालूम कि इतनी बड़ी हजारों की धर्म-सभा में कौन आया और कौन नहीं आया? भगवान् बुद्ध एक एक आदमी को जानते हैं। और उसे आश्चर्य हुवा कि वो कैसे पहचान गए कि वो वेश्या है और वो चोर है। घोर आश्चर्य हुवा आनंद को। बुद्ध से उनके नाम पते लेकर मुश्किल में रात्री काटी और सुबह होते ही तहकीकात में लग गया कि कहीं बुद्ध आनंद के मजे ले रहे हैं?
सुबह होते ही आनंद के सामने जो पहला संन्यासी पड़ा, उससे आनंद ने पूछा- आपने रात्रि सभा में बुद्ध ने जो आखिरी वचन कहे कि अब जाकर अपना-अपना काम करो, उन शब्दों से आपने क्या समझा? भिक्षु बोला- इसमे समझने वाली क्या बात है? भिक्षु का नित्य कर्म है की अब शयन पूर्व का ध्यान करते-करते विश्राम करो। आनंद को इसी उत्तर की अपेक्षा थी, अत: वो अब तेजी से नगर की और चल दिया।
आनंद सीधे चोर के घर पूछते-पूछते पहुंच गया और चोर तो भिक्षु आनंद को देखते ही गदगद हो गया और उनकी सेवा में लग गया। आनंद को बैठाकर उनसे आने का प्रयोजन पूछा। आनंद ने अपना सवाल दोहरा दिया। और चोर बड़े ही विनम्र शब्दों में बोला- भिक्षु , अब आपको क्या बताऊं? कल रात पहली बार बुद्ध की धर्मसभा में गया और उनके प्रवचन सुन कर जीवन सफल हो गया। फ़िर भगवान् ने कहा की अब अपना-अपना काम करो। तो मैं तो चोर हूं अब बुद्ध के प्रवचन सुनने के बाद झूंठ तो बोलूंगा नही। कल रात मैं वहां से चोरी करने चला गया और इतना तगड़ा हाथ मारा की जीवन में पहली बार इतना तगड़ा दांव लगा है की आगे चोरी करने की जरुरत ही नही है। आनंद को बड़ा आश्चर्य हुवा और वो वहां से वेश्या के घर की तरफ़ चल दिया ।
वेश्या के घर पहुंचते ही वो तो भिक्षु आनद को देखते ही टप-टप प्रेमाश्रु बहाते हुए उनके लिए भिक्षा ले आई और अन्दर आकर बैठने के लिए आग्रह किया। आनंद अन्दर जाकर बैठ गया और अपना सवाल दोहरा दिया। वेश्या ने कहना शुरू किया- भिक्षु ये भी कोई पूछने की बात है? भगवान बुद्ध ने कहा कि अब जाओ अपना-अपना काम करो। सो उनके वचन टालने का तो कोई प्रश्न ही नही है। मेरा काम तो नाचना-गाना है, सो वहां से प्रवचन सुन कर आने के बाद तैयार हुई और महफ़िल सजाई। यकीन मानो कल जैसी महफ़िल तो कभी सजी ही नहीं। मेरे सारे ग्राहक जिनमे बड़े २ राजे महाराजे भी थे। वो इतने प्रसन्न होकर गए कि अपना सब कुछ यहां लुटा कर चले गए। अब मुझे धन के लिए यह कर्म करने की कभी आवश्यकता ही नही पड़ेगी। बुद्ध की कृपा से एक रात में इतना सब कुछ हो गया। आनंद बड़ा आश्चर्य चकित हो कर वहां से वापस बुद्ध के पास लौट गया।
आनंद ने जाकर बुद्ध को प्रणाम किया और सारी बात बताई। अब बुद्ध बोले- आनंद! इस संसार में जितने जीव हैं, उतने ही दिमाग हैं। और बात तो एक ही होती है पर हर आदमी अपनी-अपनी समझ से उसके मतलब निकाल लेता है। अब तुम समझ ही गए होगे कि बात तो एक ही थी पर सबकी समझने की बुद्धि अलग-अलग थी। इसीलिए मैं एक बात को तीन बार कहता हूं कि कोई गलती नहीं हो जाए। पर उसके बाद भी सब अपने हिसाब से ही समझते हैं। इसका कोई उपाय नहीं है। ये सृष्टि ही ऐसी है।
साभार: taau.in