लालबहादुर शास्त्री ने इस तरह जिला मैजिस्ट्रेट को दिया था निष्ठा एवं ईमानदारी का पुरस्कार

तब लालबहादुर शास्त्री देश के गृहमंत्री थे। एक बार वे किसी सरकारी काम से इटावा गए। उन दिनों राजेश्वर प्रसाद वहां के जिला मैजिस्ट्रेट थे। जब शास्त्रीजी पहुंचे तो राजेश्वर प्रसाद की जगह वहां के अतिरिक्त जिला मैजिस्ट्रेट ने शास्त्रीजी का स्वागत किया। कुछ देर बाद शास्त्रीजी अतिरिक्त जिला मैजिस्ट्रेट से बोले, ‘राजेश्वर प्रसाद जी आज क्यों नहीं आए/ उन्हें तो इस कार्यक्रम में आना था।’ अतिरिक्त जिला मैजिस्ट्रेट बोले, ‘आते तो वही, लेकिन अचानक एक महत्वपूर्ण जांच आ गई। उस जांच में उनका रहना बहुत जरूरी था। ऐसे में उन्होंने मुझे आपका स्वागत करने के लिए भेज दिया।’ शास्त्रीजी मुस्कराकर चुप हो गए।

अतिरिक्त जिला मैजिस्ट्रेट का जवाब सुनकर सभी सोचने लगे कि अब राजेश्वर प्रसाद जी की नौकरी गई। अरे, बोल देते कि वे बीमार हो गए या कोई और बात हो गई। इससे कम से कम जिला मैजिस्ट्रेट की नौकरी तो बच जाती। लोग अपने कयास लगाते रहे, मगर किसी को खबर नहीं थी कि शास्त्रीजी अपना मन बना चुके थे। कुछ समय बाद ही जिला मैजिस्ट्रेट के पास खबर पहुंची कि उन्हें गृहमंत्री का निजी सचिव बना दिया गया है। खबर पाकर मैजिस्ट्रेट राजेश्वर प्रसाद दंग रह गए। उन्हें समझ ही नहीं आया कि अचानक यह क्या हुआ।

वह स्वयं से ही बोले, ‘कमाल की बात है, न तो मैं गृहमंत्री से मिला, न कोई बातचीत हुई। मेरे बारे में बिना कुछ जाने उन्होंने मुझे अपनी निजी सचिव नियुक्त कर दिया।’ तभी अतिरिक्त जिला मैजिस्ट्रेट उनके पास आए और बोले, ‘सर, यह आपको आपकी ड्यूटी के प्रति निष्ठा एवं ईमानदारी का इनाम मिला है।’ यह सुनकर राजेश्वर प्रसाद बोले, ‘कितना अच्छा हो यदि सारे मंत्री ड्यूटी के प्रति निष्ठावान लोगों को उचित सम्मान दें। ऐसा करने से देश में अधिकारियों एवं कर्मचारियों के मन में सेवाभाव और कर्तव्य परायणता का ही विकास होगा।’