ये हैं देश के सबसे रहस्यमयी मंदिर, जहां होती हैं चौंकाने वाली घटनाएं

भारत अपने प्राचीन मंदिरों के लिए पूरी दुनिया में चर्चित है। देश में छोटे-बड़े ऐसे अनगिनत मंदिर हैं जिन्हें अपनी संस्कृति, मान्यताओं या सिद्धि की वजह से जाना जाता है। इसी तरह देश में कई रहस्यमय मंदिर भी हैं, जो अपनी परंपराओं, मान्यताओं और रहस्यमयी कारणों की वजह से जाने जाते हैं। आइए देखते हैं देश के कुछ प्रमुख ऐसे ही मंदिरों की कहानी और उनका इतिहास।

कोडुंगल्लूर भगवती मंदिर, केरल

कोडुंगल्लूर देवी मंदिर अत्यंत प्राचीन मंदिर है, जो कि केरल राज्य के त्रिशूर जिले में है। वैसे तो दक्षिण भारत में बहुत से मंदिर है परंतु यह मंदिर सबसे अद्भुत है। कोडुंगल्लूर देवी मंदिर को श्री कुरम्बा भगवती मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में मां भद्रकाली उपस्थित हैं, उनकी काली रूप में पूजा की जाती है। यहां आने वाले लोग देवी को कुरम्बा या कोडुंगल्लूर अम्मा के नाम से बुलाते है। ऐसा माना जाता है कि यहां होने वाली पूजा-अर्चना या अनुष्ठान देवी के निर्देशों पर ही किए जाते हैं।

लेपाक्षी मंदिर, आंध्र प्रदेश

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में भगवान शिव का लेपाक्षी नामक एक मंदिर है। इस मंदिर में भगवान शिव के क्रूर और रौद्र रूप भगवान वीरभद्र विराजमान हैं। इसी कारण से इस मंदिर को वीरभद्र मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर हैंगिंग पिलर टेंपल के नाम से भी अब दुनियाभर में विख्यात हो चुका है। इस मंदिर में यूं तो 70 खंभे हैं लेकिन इस मंदिर का आकर्षण केंद्र हवा में लटका वो खंबा जिस पर मंदिर का पूरा भार आधारित है। मंदिर में मौजूद हवा में लटके इस खंबे को आकाश स्तंभ के रूप में माना जाता है। यह खंबा जमीन से आधा इंच के करीब ऊपर उठा हुआ है।

इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि हवा में लटके इस खंबे के नीचे से अगर कपड़ा निकाला जाए तो उस व्यक्ति के घर में सुख-समृद्धि का वास हमेशा बना रहता है। खंबे के हवा में लटकने के पीछे एक कथा भी प्रचलित है। माना जाता है कि भगवान वीरभद्र की उत्पत्ति दक्ष प्रजापति के यज्ञ के बाद हुई थी। जब महादेव ने माता सती के आत्मदाह के बाद वीरभद्र को अपनी जटा से उत्पन्न कर दक्ष प्रजापति को मारने भेजा था। तब दक्ष के वध के बाद भगवान वीरभद्र का क्रोध शांत होने के नाम ही नहीं ले रहा था। पाताल से लेकर आकाश तक उनकी हुंकार से सब भयभीत हो उठे थे।

तब भगवान शिव ने उन्हें क्रोध शांत करने के लिए तपस्या का आदेश दिया। जिसके बाद कहा जाता है कि जहां आज लेपाक्षी मंदिर है उसी स्थान पर वीरभद्र भगवान ने तपस्या की थी और क्रोध पर नियंत्रण पाया था। मान्यता है कि इस मंदिर में जो हवा में लटका खंबा है वो भगवान वीरभद्र के क्रोध के कारण ही है।

करणी माता मंदिर, बीकानेर

राजस्थान के बीकानेर में करणी माता का मंदिर पर्यटकों के बीच काफी मशहूर है। यह मंदिर करणी माता को समर्पित है। यहां रहने वाले लोगों का मानना है कि करणी माता लोगों की रक्षा करने वाली देवी दुर्गा का अवतार हैं। करणी माता चारण जाति की योद्धा ऋषि थीं। एक तपस्वी का जीवन जीते हुए, यहां रहने वाले लोगों के बीच वह पूजी जाती थी। जोधपुर और बीकानेर के महाराजाओं से अनुरोध प्राप्त करने के बाद, उन्होंने मेहरानगढ़ और बीकानेर किलों की आधारशिला भी रखी। हालांकि उन्हें समर्पित कई मंदिर हैं, लेकिन बीकानेर से 30 किलोमीटर की दूरी पर देशनोक शहर में स्थित इस मंदिर की सबसे ज्‍यादा मान्यता है।

बीकानेर में करणी माता मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए ही लोकप्रिय नहीं है, बल्कि यह मंदिर 25,000 से ज्‍यादा चूहों का घर है, जिन्‍हें अक्‍सर ही यहां घूमते देखा जाता है। आमतौर पर कोई भी चूहों की झूठी चीज खाने के बजाय फेंक देता है, लेकिन यहां पर भक्‍तों को चूहों का झूठा प्रसाद ही दिया जाता है। यह इस मंदिर की पवित्र प्रथा है। यही वजह है कि भारत और विदेशों के विभिन्न कोनों से लोग इस अद्भुत नजारे को देखने आते हैं।

स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर, गुजरात

स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर गुजरात की राजधानी गांधीनगर से लगभग 175 किमी दूर जंबूसर के कवि कंबोई गांव में मौजूद है। अगर ट्रैफिक जाम न मिले तो आप गांधीनगर से इस जगह तक 4 घंटे में ड्राइव करके पहुंच सकते हैं। मंदिर 150 साल पुराना है, जो अरब सागर और खंभात की खाड़ी से घिरा हुआ है। इस मंदिर की महिमा देखने के लिए आपको यहां सुबह से लेकर रात तक रुकना पड़ेगा।

यह मंदिर भारत के अविश्वसनीय और रहस्यमय मंदिरों में आता है। कहा जाता है कि ये मंदिर दिन में कुछ समय के लिए पूरी तरह से गायब हो जाता है। गायब होने के बाद इस मंदिर का एक भी हिस्सा दिखाई नहीं देता। यह हाई टाइड के दौरान रोजाना पानी में डूब जाता है। पानी हटने के बाद इसे फिर से श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। माना जाता है इस मंदिर को भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने बनवाया था।

कामाख्या देवी मंदिर, गुवाहाटी

माता कामाख्या देवी मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। भारतवर्ष के लोग इसे अघोरियों और तांत्रिक का गढ़ मानते हैं। असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 10 किमी दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। मंदिर की खास बात यह है कि यहां न तो माता की कोई मूर्ति है और न ही कोई तस्‍वीर। बल्कि यहां एक कुंड है, जो हमेशा ही फूलों से ढका रहता है। इस मंदिर में देवी की योनी की पूजा होती है। आज भी माता यहां पर रजस्वला होती हैं।

पुराणों के अनुसार विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे। जहां-जहां यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया। इस जगह पर माता की योनी गिरी थी, इसलिए यहां उनकी कोई मूर्ति नहीं बल्कि योनी की पूजा होती है। आज यह जगह शक्तिशाली पीठ है। दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, बसंती पूजा, मदान देऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर की रौनक देखते ही बनती है।

असीरगढ़ के किले में स्थित शिव मंदिर

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के असीरगढ़ में एक शिव मंदिर स्थित है। असीरगढ़ किले में स्थित शिव मंदिर की प्राचीन महिमा कई धार्मिक ग्रंथों में भी मिलती है। इतना ही नहीं इस प्राचीन शिव मंदिर में विराजमान भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने दूर-दूर से श्रद्धालु असीरगढ़ के किले में पहुंचते हैं। इस मंदिर का एक बड़ा रहस्य है कि इस मंदिर के रोजाना शाम को बंद होने के बावजूद जब सुबह मंदिर के द्वार खुलते हैं, तो शिवलिंग पर फूल और रोली चढ़ी हुई होती है। इतना ही नहीं शिव मंदिर में किसी के पूजन करने के प्रमाण भी मिलते हैं। बहरहाल, यह खोज का विषय है कि, आखिर मंदिर के कपाट बंद होने के बावजूद सुबह द्वार खुलते ही शिवलिंग पर फूल और रोली आखिर कहां से आकर चढ़ते हैं।

महाभारत के अश्वत्थामा को पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के दौरान हुई एक चूक भारी पड़ी और भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें युगों-युगों तक भटकने का श्राप दे दिया। ऐसा कहा जाता है कि पिछले लगभग 5 हजार वर्षों से अश्वत्थामा भटक रहे हैं। कहा जाता है कि इस शिव मंदिर में अश्वत्थामा आज भी पूजा करने आते हैं। स्थानीय निवासी अश्वत्थामा से जुड़ी कई कहानियां सुनाते हैं। वे बताते हैं कि अश्वत्थामा को जिसने भी देखा, उसकी मानसिक स्थिति हमेशा के लिए खराब हो गई।