मृत्यु के सिवा कोई भय नहीं

जैसे पके हुए फलों को गिरने के अलावा दूसरा कोई भय नहीं है, उसी प्रकार मनुष्य को मृत्यु के सिवा कोई भय नहीं है।
वाल्मीकि

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भय से ही दुख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और बुराइयां भी भय से ही उत्पन्न होती हैं।
स्वामी विवेकानंद

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भोगों में रोग का भय है। ऊंचे कुल में पतन का भय है। धन में राजा का, मान में दीनता का, बल में शत्रु का तथा रूप में वृद्धावस्था का भय है। गुण में दुष्ट जनों का भय है तथा शरीर को काल का भय है। भय से रहित तो केवल वैराग्य है।
भर्तृहरि