महात्‍मा गांधी ने डॉक्‍टर को इस तरह कराया उसकी गलती का अहसास

संकलन: प्राची प्रतीची
महात्मा गांधी के वर्धा स्थित सेवा ग्राम आश्रम में देश ही नहीं विदेशों से भी ऐसे युवा आते थे जिनके मन में देशसेवा की आकांक्षा होती थी। हालांकि सेवा का सही मतलब न समझने की वजह से कई बार ऐसे युवकों को बापू की झिड़कियां भी सुननी पड़ जाती थी। ऐसी ही एक घटना तब हुई जब एक दिन पास के गांव से एक बूढ़ी गरीब महिला गांधी जी से खुजली की दवा लेने आई। गांधीजी ने आश्रम में आए एक फॉरेन रिटर्न युवा डॉक्टर को बुलाकर कहा, ‘इस महिला को नीम की पत्तियां पीस कर खिलाओ और छाछ पिलाओ।’ उसे यह काम सौंप कर गांधीजी दूसरे काम में लग गए।

इस महिला से सीखना चाहिए देश की सेवा कैसे की जाती है

डॉक्टर साहब ने उस पेशंट से धैर्यपूर्वक बातचीत की और उसकी समस्या के बारे में तसल्ली से पूरी जानकारी लेने के बाद कहा, ‘बापू ने बिल्कुल ठीक कहा है। नीम की पत्तियां पीसकर खाओ और छाछ पियो। उससे जरूर फायदा होगा।’ फिर दो-तीन दिन बाद उस महिला का हालचाल लेने खुद उसके गांव गए। वहां महिला से मिले तो उसकी अवस्था में कोई सुधार नहीं दिखा। डॉक्टर साहब ने महिला से पूछा, ‘तुमने कितनी छाछ पी है?’ उस गरीब औरत ने दुखी स्वर में बताया कि वह छाछ नहीं पी सकी।

जानें, कैसे महात्‍मा गांधी ने सिखाया स्‍वच्‍छता का महत्‍व

डॉक्टर महोदय ने आश्रम लौट कर जैसे ही गांधीजी को बताया कि उस महिला ने उनके कहे मुताबिक छाछ पी ही नहीं, इसलिए उसकी खुजली ज्यों की त्यों है, उनकी शामत आ गई। गुस्से और दुःख से गांधीजी बोले- जब कहा था कि उस बूढी महिला को छाछ पिलाना तो इसका मतलब था कि छाछ का इंतजाम करके उसे पिलाना, ना कि उसे छाछ पीने का उपदेश देकर चले आना। तुम यह नहीं देख पाए कि वह गरीब महिला खुद छाछ का इंतजाम नहीं कर सकती। क्या ऐसे ही गांव वालों की सेवा करोगे?’ डॉक्टर को अपनी भूल का अहसास हो चुका था।