मधुपर्क विधि क्या है? (What is Madhupark Vidhi?)

“मधुपर्क” एक वह पदार्थ/पेय है की जो विवाह में वर जब वधू के द्वारपर आता है, तो उसे वधू पक्ष की ओरसे बडे आदरसे प्राशीत किया जाता है | अभी भी यह परंपरा केवल समाजमें अखंडीत है | मधुपर्क में दही और शहद मिलाते है यदी शहद उपलब्ध न होने पर घी का प्रयोग होता है !विवाह अत्यन्त पवित्र और महत्वपूर्ण संस्कार है। गृहस्थाश्रम में प्रवेश का नाम विवाह है। हमारे शास्त्रों के अनुसार यह एक अत्यन्त पवित्र और महत्वपूर्ण संस्कार है। इसका क्रमानुसार विवरण इस प्रकार है:द्वारपूजा: विवाह के दिन जब वर वधुगृह में उपस्थित होता है उस समय द्वार पर कन्या का पिता या बड़ा भाई अर्घ्य, पाद्य, आचमन, मधुपर्क आदि के द्वारा वर का स्वागत या पूजन करते हैं। कहीं-कहीं कन्या स्वयं द्वार पर आकर मधुर वचनों से वर का सत्कार करती हुई, उसके गले में वरमाला पहनाती है। तत्पश्चात वर भी वधु को माला पहनाकर उसका परिणय स्वीकार करता है।

कन्या पक्ष से विवाह मंडप के मध्य वर का विधिपूर्वक मधुपर्क (दही, शहद, घी) के द्वारा विशेष सम्मान किया जाता है। मधुपर्क: मधुपर्क में दही, शहद और घी का तीन, दो, एक के अनुपात में मिश्रण होता है, जिसे कन्या पिता वर को खाने के लिए देता है। वस्तुत: यह एक रसायन (महौषधि) है, जो वात, कफ, पित्तशामक, स्वास्थ्यवर्धक एवं मधुर है। इसके द्वारा गृहिणी को यह शिक्षा दी गई है कि उसे पाकशाला में मधुर, बलवर्धक, रक्तवर्धक एवं पथ्यकारी आहार बनाना चाहिए तथा वर को यह संकेत भी दिया जाता है कि आपको इसी तरह हितकारी भोजन तथा सद्व्यवहार जीवन पर्यन्त मिलता रहेगा।

वर मधु पर्क को हाथ में लेकर यह वाक्य बोलता है: ”ओम मित्रस्य त्वा चक्षुषा समीक्षे।।” अर्थात हे खाद्य, मैं तुझे मित्र की दृष्टि से देखता हूं। इस प्रकार मित्रता, प्रसन्नता की भावना के साथ ”भूतेभ्यस्त्वा परिगृहणामि” मैं तुझे केवल अपने लिए नहीं, अपितु प्राणिमात्र के लिए ग्रहण करता हूं। ऐसा कहता हुआ मधुपर्क को अन्य तीन भागों में विभक्त कर स्वीकार करता है।

इससे ‘तेन त्यक्तेन मुंजीथा:’ संसार के पदार्थों को त्यागपूर्वक उपभोग करना चाहिए, इस आदर्श को चरितार्थ करता है। गोदान: मधुपर्क प्राशन के पश्चात गोदान की विधि होती है। गौ भारतीय संस्कृति की प्रतीक है। गौ नहीं तो घर नहीं। यह गौ इसलिए दी जाती है कि इसके दुग्धादि पदार्थों का सेवन कर घर के सभी सदस्य निरोग और स्वस्थ रह सकें। विवाह के अवसर पर गोदान का विधान कर ऋषि मुनियों ने गोरक्षा का अमोघ उपाय ढूंढ़ निकाला था।