प्रकृति से दूर होने का अर्थ है परमात्मा से दूर

ओशो

संत जगजीवन दास, जग जीवन को समझाने की क्षमता सब में नहीं है। जो लोग प्रेम को समझने में समर्थ है, जो उस में खो जाने को तैयार है, मिटने को तैयार है, वही उस का आनंद अनुभव कर सकेगें। शायद समझ बुझ यहां थोड़ी बाधा ही बन जाये। जग जीवन प्रमाण नहीं दे सकते, गीत गा सकते है और गीत भी काव्य के नियमों के अनुसार नहीं होगा, छंद वद्ध नहीं होगा। उसके तुक नहीं मिले होगें। शायद शब्द भी अटपटे हो पर यह रास्ता अति मधुर और सुंदर अवश्य हो, एक पहाड़ी रास्ते की तरह, जो उबड़ खाबड़ हो, कष्ट कांटों से भरा हो, ऊंचा नीचा हो, पर उसका सौंदर्य देखते ही बनता है। नहीं पद चाप मिलेंगे वहां मुसाफ़िरों के, पर अद्भुत होगा वह मार्ग।

गांव के बिना पढ़े लिखें थे जग जीवन, गांव की सादगी, मिलेगी, सरलता मिलेगी। छंद मात्राओं की फिक्र मत करना। नहीं तो चुक जाओगे बहुत कुछ सार रह जाये छंदो की जाली में, और असार ही तुम्हारे पास रह जायेगा। जैसे गांव के लोग गीत गाते है। ऐसे वे गीत हैं। जग जीवन के जीवन का प्रारंभ वृक्षों से होता है, झरनों से नदियों से, गायों से, बैलों से। चारों तरफ प्रकृति छायी रही होगी। और जो प्रकृति ने निकट हो वह परमात्मा के निकट हे। जो प्रकृति से दूर है वह परमात्मा से भी दूर है।

अगर आधुनिक मनुष्य परमात्मा से दूर पड़ रहा है रोज-रोज, तो उसका कारण मनुष्य में नास्तिकता बढ़ रही है यह नहीं है। आदमी जैसा है वैसा ही है। पहले भी नास्तिक हुए है। और एक से एक हुए है जिनके उपर और कुछ जोड़ नहीं जा सकता। चार्वाक ने जो कहा है, तीन हजार साल पहले, न उसमें आप कुछ न जोड़ पाओगे जो कहना था सब कह दिया। दिदरो, मार्क्स, माओ चार्वाक के शास्त्र में कुछ जोड़ नहीं पाये है। प्रकृति और आदमी के बीच जो संबंध टूट गया, लोहा और सीमेंट- उसमें आदमी घिर गया। उसमें फूल नहीं खिल सकते है।

बैठे-बैठे झाड़ों के नीचे जग जीवन को कुछ रहस्य अनुभव हुए होगें। क्या है यह सब रात आकाश के नीचे, घास पर लेट कर तारों का देखना, आ गई होगी परमात्मा की। जब तुम पतझड़ में खड़े सूखे वृक्षों को फिर से हरा होते देखते हो, फैलने लगती है हरियाली, उतर आता है परमात्मा चारों और प्रकृति के साथ हम भी कैसे हरे-भरे हो जाते है। परमात्मा शब्द परमात्मा नहीं है। रहस्य की अनुभूति में परमात्मा है।

परमात्मा क्या है। इस प्रकृति के भीतर छिपे हुए अदृश्य हाथों का नाम: जा सूखे वृक्षों पर पतिया ले आता है। प्यासी धरती के पास जल से भरे मेघ ले आता है। पशु पक्षियों की भी चिंता करता है। अगोचर है, अदृश्य है, फिर भी उसकी छाप हर जगह दिखाई दे जाती है। इतना विराट आयोजन करता है। पर देखिये उस की व्यवस्था, सुनियोजित ढंग से। प्रकृति का नियम कहो, कि कहो परमात्मा।