पत्नी को नाराज करना पड़ा ब्रह्माजी को महंगा, आज भी भुगत रहे इसकी सजा

पुराणों में ब्रह्माजी को सृष्टि के रचयिता कहा गया है। लेकिन हैरानी की बात है कि जिन्होंने सृष्टि का निर्माण किया उन्हें ही संसार पूजता नहीं है। ब्रह्मा जी की पूजा नहीं होने को लेकर एक बड़ी ही प्रचलित कथा है जिसका संबंध पूरे देश में स्थित केवल एक ब्रह्माजी के मंदिर से है जो राजस्थान के पुष्कर में है। यह मंदिर ब्रह्माजी और उनकी पत्नी सावित्री के बीच दूरी बढ़ने की कहानी भी बताता है। कहीं-कहीं सरस्वती और सावित्री को एक ही बताया गया है। कहते हैं पुष्कर में ब्रह्मा की पत्नी सावित्री रूठीे थीं। यही वजह है कि उन्होंने ब्रह्मा के मंदिर से बिल्कुल अलग-थलग पहाड़ पर अपना बसेरा बनाया हुआ है। सावित्री क्यों ब्रह्मा से नाराज हुईं? क्यों उनकी पूजा अपने पति से दूर अलग मंदिर में होती है इसके पीछे बड़ी रोचक कथा है।

ब्रह्मा जी को न पूजे जाने के पीछे का रहस्य

कहते हैं कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के लिए राजस्थान के पुष्कर में यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में उन्हें पत्नी के संग बैठना जरूरी था, लेकिन उनकी पत्नी सावित्री को पहुंचने में देरी हो रही थी। पूजा का शुभ मुहूर्त बीता जा रहा था। सभी देवी-देवता यज्ञ स्थल पर आ चुके थे सावित्री समय से नहीं आ पाईं। जब शुभ मुहूर्त निकलने लगा, तब मजबूरन ब्रह्माजी ने नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट किया और उनसे विवाह कर अपना यज्ञ संपन्न कर लिया। जब सावित्री पहुंचीं तो ब्रह्मा जी के बगल में अपनी जगह किसी अन्य स्त्री को यज्ञ में बैठे देख अत्यंत क्रोधित हुईं। उसी क्रोध में उन्होंने ब्रह्मा जी को शाप दिया कि आप जिस संसार की रचना करने के लिए मुझे भुला बैठे वह संसार आपको नहीं पूजेगा।

सावित्री का गुस्सा इतने में ही शांत नहीं हुआ। उन्होंने ब्रह्मा जी के साथ भगवान विष्णु को भी इस काम में साथ देने के चलते शाप दिया था। उन्हें पत्नी से विरह का कष्ट सहना पड़ा। कहते हैं कि इसी के चलते भगवान विष्णु के मानव अवतार श्रीराम को 14 वर्षों तक वनवास काल में पत्नी से अलग रहना पड़ा था। उन्होंने विवाह कराने वाले ब्राह्मण को भी श्राप दिया कि चाहे जितना दान मिले, ब्राह्मण कभी संतुष्ट नहीं होंगे। गाय को कलयुग में गंदगी खाने और नारद मुनि को आजीवन कुंवारा रहने का शाप दिया। अग्निदेव भी सावित्री के कोप से बच नहीं पाए। उन्हें भी कलयुग में अपमानित होने का शाप मिला।

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शाप के बाद देवी-देवताओं ने सावित्री जी को अपना शाप वापस लेने का आग्रह किया। लिया हुआ शाप वापस नहीं लिया जा सकता था, गुस्सा शांत होने पर उन्होंने ब्रह्मा जी से कहा कि पूरे संसार में केवल पुष्कर ऐसी जगह है जहां आपका मंदिर होगा। अगर किसी ने कहीं और आपका मंदिर बनाना चाहा तो उसका विनाश निश्चित है। इसी के चलते ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर पुष्कर में हैं।

कैसे हुआ मंदिर का निर्माण
ब्रह्मा जी का मंदिर कैसे बना इस बारे में ज्यादा जानकारी तो किसी को नहीं है, लेकिन कहते हैं कि एक हजार दो सौ साल पहले अरण्व वंश के एक राजा को सपना आया था। राजा ने देखा कि इस जगह पर एक मंदिर है जिसको मरम्मत आदि की आवश्यकता है। राजा ने मंदिर का दोबारा निर्माण कराया। मंदिर के पीछे एक पहाड़ी पर ब्रह्मा जी की पत्नी सावित्री का भी मंदिर है। माना जाता है क्रोध शांत होने के बाद सावित्री पुष्कर के पास मौजूद पहाड़ियों पर जाकर तपस्या में लीन हो गईं और फिर वहीं की होकर रह गईं।

पुष्कर में जितनी अहमियत ब्रह्मा की है, उतनी ही सावित्री की भी है। सावित्री को सौभाग्य की देवी माना जाता है। यह मान्यता है कि यहां पूजा करने से सुहाग की लंबी उम्र होती है। यही वजह है कि महिलाएं यहां आकर प्रसाद के तौर पर मेहंदी, बिंदी और चूड़ियां चढ़ाती हैं और सावित्री से पति की लंबी उम्र मांगती हैं। कहते हैं कि यहीं रहकर सावित्री भक्तों का कल्याण करती हैं। वहां जाने के लिए श्रद्धालुओं को कई सैकड़ों सीढ़ियां पार करनी पड़ती है। ब्रह्मा और सावित्री दोनों का आर्शीवाद लेने से ही यह तीर्थयात्रा सफल होती है।

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पुष्कर झील का भी है खास महत्व

मन्दिर के बगल में ही एक मनोहर झील है जिसे पुष्कर झील के नाम से जाना जाता है। पुष्कर झील हिन्दुओं एक परमपावन स्थान के रूप में जानी जाती है। कहते हैं जब यज्ञ के स्थान को सुनिश्चित करते समय ब्रह्मा जी के हाथ से कमल का फूल पृथ्वी पर गिर पड़ा। इससे पानी की तीन बूदें पृथ्वी पर गिर गई, जिसमें से एक बूंद पुष्कर में गिरी थी। इसी बूंद से पुष्कर झील का निर्माण हुआ।

पुष्कर झील अपनी पवित्रता और सुंदरता के लिए पूरे विश्व में जानी जाती है। श्रद्धालुओं के लिए पुष्कर बहुत महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में एक बार पुष्कर की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। पुष्कर हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थो में से एक है। इसका बनारस या प्रयाग की तरह ही महत्व है। बद्रीनारायण, जगन्नाथ, रामेश्वरम, द्वारका इन चार धामों की यात्रा करने वाले किसी तीर्थयात्री की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक वह पुष्कर के पवित्र जल में स्नान नहीं कर लेता।

इसका उल्लेख चौथी शताब्दी में आए चीनी यात्री फाह्यान ने भी किया है। ऐसा माना जाता है कि इस जल में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ब्रह्माजी ने पुष्कर झील किनारे कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था, जिसकी स्मृति में अनादि काल से यहां कार्तिक मेला लगता आ रहा है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां बड़ी संख्या में संतों का आगमन होता है। इस दौरान श्रद्धालु बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर इस पवित्र झील में डुबकी लगाते हैं।