दुबले-पतले राजेंद्र बाबू से ऐसे हारा हट्टा-कट्टा आदमी

एक बार डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ट्रेन के तीसरे दर्जे में बैठकर कहीं जा रहे थे। गर्मी का समय था और गाड़ी में भीड़ बहुत थी। उनकी ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी। संयोग से उसी समय प्लैटफॉर्म के दूसरी ओर भी एक ट्रेन आकर रुकी। उसमें भी भीड़ बहुत थी। दूसरी ट्रेन के एक डिब्बे में लोग पानी के लिए चिल्ला रहे थे। भीड़ के कारण यात्री डिब्बे से उतर नहीं पा रहे थे।

राजेंद्र बाबू की नजर एक महिला पर गई, जो अपने छोटे बच्चे को गोद में लिए खिड़की से पानी-पानी चिल्ला रही थी। बच्चा प्यास से रो रहा था। उस महिला की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा था। राजेंद्र बाबू उसकी परेशानी देखकर अपने डिब्बे के लोगों को हटाते हुए किसी तरह नीचे उतरे। उन्होंने दौड़कर नल से अपने लोटे में पानी भरा और उस महिला को दे दिया। तब तक उनकी गाड़ी चल चुकी थी। किसी तरह उन्होंने अपनी ट्रेन पकड़ ली। जब वह अपनी सीट पर आकर बैठे तो उनकी सीट के बगल वाले व्यक्ति ने कहा, ‘आप तो दुबले-पतले कमजोर आदमी हैं। इस तरह जोखिम उठाकर आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था। यात्रियों की सुविधाओं का ध्यान रखना तो सरकार का काम है।’

राजेंद्र बाबू बोले, ‘भैया जब हमलोग ही एक-दूसरे की मदद नहीं करेंगे तो सरकार क्या करेगी? सरकार का दोष क्यों देते हो। हमें अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य समझना चाहिए। वैसे प्यासे को पानी पिलाना तो पुण्य का काम है। आप तो हट्टे-कट्टे इंसान हैं। आपको यह काम सबसे पहले करना चाहिए था।’ उस यात्री को जब मालूम पड़ा कि बातचीत करने वाला कोई और नहीं राजेंद्र बाबू हैं, तो वह शर्मिंदा हो गया। वह राजेंद्र बाबू से क्षमा मांगने लगा। इस पर राजेंद्र बाबू ने कहा कि क्षमा मांगने की क्या बात है। आप भी प्रण कर लें कि जरूरतमंद की सेवा का कोई अवसर नहीं छोड़ेंगे। उस व्यक्ति ने वैसा ही करने का वचन दिया।

संकलन: दीनदयाल मुरारका