टैक्स चोरी करने वाले के लिए गांधीजी ने की वकालत, ऐसी मिली सजा

यह तब की बात है कि जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका के डरबन नगर में वकालत करते थे। उसी शहर में एक प्रसिद्ध पारसी सेठ रुस्तमजी भी रहते थे। एक दिन रुस्तमजी महात्मा गांधी के पास आए और खुद पर हुए कर चोरी के मुकदमे के बारे में गांधी जी को बताया। रूस्तमजी चाहते थे कि महात्मा गांधी उनका मुकदमा लड़ें। उन्होंने अपने मन की बात गांधी जी से बताई। महात्मा गांधी ने रुस्तमजी से कहा कि यदि आपने कर की चोरी की है तो सारी बात मुझे सच-सच बता दीजिए।

गांधीजी की बात का रुस्तमजी पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने उनके सामने यह कबूल किया कि उन्होंने इस समय ही नहीं, बल्कि पहले भी कई बार कर की चोरी की है। यह सुनकर गांधीजी ने कहा, ‘यदि यही सच्ची बात आप अदालत में भी कह दें और इस बात का मुझे पूरा आश्वासन दें तभी मैं आपका मुकदमा लड़ सकता हूं।’ रुस्तमजी ने अपनी स्वीकृति प्रदान की और गांधीजी उस मुकदमे को लड़ने के लिए तैयार हो गए। इजलास में गांधीजी ने कटघरे में खड़े रुस्तमजी से दो सवाल किए, ‘क्या आपने कर की चोरी की है और क्या आपने इससे भी पहले कर की चोरी की है?’

रूस्तमजी का उत्तर था, ‘जी हां, मैंने पहले भी की है और अनेक बार कर की चोरी की है।’ इसके पश्चात् रुस्तमजी ने सिलसिलेवार सारी विगत अदालत के सामने पेश कर दी। तब गांधीजी ने जज से कहा, ‘जज साहब, मेरे मुवक्किल ने सारी बातें सच-सच कह दी हैं क्योंकि उसका हृदय परिवर्तन हो चुका है। अब आपको अधिकार है कि आप इसे योग्य सजा दें।’ जज पर गांधीजी की सत्यनिष्ठा का ऐसा प्रभाव पड़ा कि जज ने रुस्तमजी को कोई सजा नहीं दी, और रुस्तमजी ने भी फिर भविष्य में कभी कर की चोरी नहीं की।

संकलन : बेला गर्ग